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Operation Blue Star: पंजाब पर लगा ऐसा घाव जिसकी कहानी हर कोई अलग अलग सुनता है

Operation Blue Star: एक ऐसा सैनिक ऑपरेशन था जिसे सिख समाज और पंजाब के दिल पर एक ऐसा घाव दिया जिसे शायद ही कोई भूल पाये, देखिये 1 जून 1984 का वो काला दिन जिस को लेकर आज भी सिख समाज के कई तबकों मे रोष है..
 
Operation Blue Star Pics
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क्या था ऑपरेशन ब्लू स्टार (What is Operation Blue Star)

Operation Blue Star Anniversary

1 जून 1984 से शुरू हुआ था वो दिनजिसे आज भी पंजाब(Punjab) के इतिहास(History) में बंटवारे के बाद सबसे बड़ा काला दिन(Black Day) नहीं, बल्कि काला दौर माना जाता है. 3 जून को भारतीय सेना(Indian Army) अमृतसर में प्रवेश कर गई और स्वर्ण मंदिर(Golden Temple) को घेर लिया गया. शाम तक कर्फ्यू लगा दिया गया. चार जून को सेना ने गोलीबारी शुरू कर दी, ताकि चरमपंथियों के हथियारों और असले का अंदाजा लगाया जा सके. शाम होते होते इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने सेना को स्वर्ण मंदिर परिसर में घुसने और ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू करने का आदेश दे दिया. जिसके बाद वहां परिसर में भीषण खून-खराबा हुआ.

Operation Bluestar Truth

सैन्य कमांडर केएस बराड़ ने माना कि चरमपंथियों की ओर से भी काफी तीखा जवाब मिला. अकाल तख्त पूरी तरह तबाह हो गया. स्वर्ण मंदिर पर भी गोलियां चलीं. कई सदियों में पहली बार वहां छह, सात और आठ जून को पाठ नहीं हो पाया. सिख पुस्तकालय जल गया.

Operation Bluestar True History

भारत सरकार के श्वेतपत्र के अनुसार, ऑपरेशन ब्लू स्टार(Operation Blue Star) में 83 सैनिक मारे गए और 249 घायल हुए. इसी श्वेतपत्र के अनुसार 493 चरमपंथी और आम नागरिक मारे गए, 86 घायल हुए और 1592 को गिरफ़्तार किया गया, लेकिन इन सब आंकड़ों को लेकर अब तक विवाद चल रहा है. सिख संगठनों का कहना है कि मरने वाले निर्दोष लोगों की संख्या हजारों में है. हालांकि भारत सरकार इसका खंडन करती आई है. वहीं इस कार्रवाई से सिख समुदाय की भावनाओं को बहुत ठेस पहुंची.

 

 

ऑपरेशन ब्लू स्टार क्यों किया गया (Why was Operation Blue Star done?)

Operation Blue Star Truth

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बारे में जानने के साथ उन परिस्थतियों को जानना भी जरूरी है, जिसके कारण ये हालात पैदा हुए. पंजाब में हिंसा की शुरुआत 1978 में हुई थी. उसी समय सिख धर्म प्रचार संस्था के प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरांवाले का नाम चर्चा में आया.1947 में जन्मे जनरैल सिंह भिंडरावाले हमेशा सिख पहनावे, कच्छा और ढीले कुर्ते में रहते थे. हथियार के नाम पर उनके पास सिख परंपरा के मुताबिक कृपाण और स्टील का एक तीर होता था. भिंडरावाले को अपनी आंखों से देख चुके पंजाब के बुजुर्ग सिख उनकी वेशभूषा का कुछ इस तरह वर्णन करते हैं कि इस छह फुटा युवा की बातचीत का अंदाज बेहद आकर्षक था. गजब की निगाह. उसके सामने सवाल करने या पलट कर जवाब देने की हिम्मत नहीं थी किसी में, रौब ही कुछ ऐसा था. माना जाता है कि इनके संबोधन में ऐसा सम्मोहन था कि सुनने वालों के दिल में इनके शब्द घर कर जाया करते थे.

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हिंसा का दौर पहले ही शुरू हो चुका था (the period of violence had already begun)

कहानी शुरू हुई 1978 से. बैसाखी (13 अप्रैल) को भिंडरावाले के समर्थकों की निरंकारियों से झड़प हुई. भिंडरावाले के 13 समर्थक मारे गए. इस घटना ने भिंडरावाले का नाम अचानक सुर्खियों में ला दिया. सिख शिक्षण संस्था दमदमी टकसाल के इस 31 वर्षीय प्रमुख का नजरिया हमेशा कट्टर रहा. सिख धर्म के बारे में वह प्रभावशाली ढंग से बातें करता. उसके कहने पर लोगों ने बाल और दाढ़ी कटवाना बंद कर दिया. लोग सिगरेट शराब पीना बंद करने लगे .

1981 के बाद जब पंजाब में हिंसक गतिविधियां बढ़ने लगीं तो भिंडरांवाले के खिलाफ लगातार हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप लगने लगे. पुलिस का कहना था कि उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं. अप्रैल 1983 में पंजाब पुलिस के उप महानिरीक्षक एएस अटवाल की दिन दिहाड़े हरमंदिर साहिब परिसर में गोलियां मारकर हत्या कर दी गई. ऐसी घटनाओं से पुलिस का मनोबल लगातार गिरता चला गया. इसके बाद पंजाब में स्थिति बिगड़ती चली गई. 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार से तीन महीने पहले तक हिंसक घटनाओं में मरने वालों की संख्या 298 हो चुकी थी. वैसे ऑपरेशन ब्लू स्टार के हालात एक  जून से ही बनने शुरू हो गए थे.

Operation Blue Star पर उठे कई तरह के सवाल (Operation Blue Star Many questions raised)

Operation Bluestar Pics

कई प्रमुख सिख बुद्धिजीवियों ने सवाल उठाए कि स्थिति को इतना खराब क्यों होने दिया गया कि ऐसी कार्रवाई करने की जरूरत पड़ी? सरकार की इस कार्रवाई से खफा कई प्रमुख सिखों ने या तो अपने पदों से इस्तीफा दे दिया या फिर सरकार द्वारा दिए गए सम्मान लौटा दिए. इसके बाद सिखों और कांग्रेस पार्टी के बीच दरार उस समय और गहरा गई, जब दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने कुछ ही महीने बाद 31 अक्टूबर को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी.

Indira Gandhi Murder

बाद में ऐसा भी माना गया कि देश के लोगों के खिलाफ सैनिक अभियान सही नहीं था. कुछ साल पहले मनमोहन सिंह की सरकार में गृह मंत्री चिदंबरम ने नक्सली समस्या से निपटने के लिए फौजी कार्रवाई की पेशकश की थी. इसे तत्कालीन जनरल वीके सिंह ने यह कहकर नकार दिया था, ‘फौज़ अपने लोगों के ख़िलाफ़ नहीं लड़ती. एक बार गलती कर चुके हैं, अब नहीं होगी.’