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5000 साल पुराना है सेंगोल का इतिहास, पीएम मोदी ने क्यों किया नए संसद भवन मे स्थापित

What is Sengol:तमिलनाडु के अधिनम संतों ने धार्मिक अनुष्ठानों के बाद प्रधानमंत्री मोदी को यह सेंगोल भेंट किया. अगर आप सेंगोल को नहीं जानते तो बता दें कि इसका इतिहास करीब 5000 साल पुराना है.
 
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New Parliament Innauguration: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन का उद्घाटन किया. वहीं सेंगोल की स्थापना प्रधानमंत्री मोदी ने लोकतंत्र के नए मंदिर में पूरे विधि-विधान के साथ करवाई.

तमिलनाडु के अधिनम संतों ने धार्मिक अनुष्ठानों के बाद प्रधानमंत्री मोदी को यह सेंगोल भेंट किया. अगर आप सेंगोल को नहीं जानते तो बता दें कि इसका इतिहास करीब 5000 साल पुराना है. सेंगोल का इतिहास आधुनिक भारत की आजादी से भी जुड़ा हुआ है और यहीं नहीं इसके कई कनेक्शन चोल वंश से भी जुड़े हुए हैं. रामायण और महाभारत के कई आख्यानों में भी ऐसी निरंतरता के प्रसारण के संदर्भ मिलते हैं. इसमें प्रत्येक राजा के राज्याभिषेक, मुकुट पहनने और सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में इसके उपयोग को दर्शाया गया है. जब किसी राजा को ताज पहनाया जाता था या ताजपोशी की जाती थी, तो उसे एक छड़ी दी जाती थी जिसे राजदंड कहा जाता था. तो आइए जानते हैं सेंगोल के इतिहास के बारे मे.

लोकसभा अध्यक्ष की सीट के पास स्थापित | Why Sengol in New Parliament?

तमिलनाडु का एक ऐतिहासिक राजदंड (सेंगोल), चांदी से बना और सोने से ढका हुआ, लोकसभा अध्यक्ष की सीट के पास रखा गया था. इसे सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में अगस्त 1947 में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भेंट किया गया था. यह औपचारिक राजदंड इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू गैलरी में रखा गया था. सेंगोल को ब्रिटिश तख्तापलट का प्रतीक माना जाता है. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनका स्वागत किया था. गृह मंत्री अमित शाह ने सेंगोल को संग्रहालय में रखने की आवश्यकता पर टिप्पणी करते हुए कहा, "सेंगोल को संग्रहालय में रखना गलत होगा."

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साम्राज्य से जुड़ा हुआ है सेंगोल का इतिहास | History of Indian Sengol

सेंगोल चोल साम्राज्य से जुड़ा हुआ है. ऐसा कहा जाता है कि जो लोग सेंगोल प्राप्त करते हैं, उनसे उचित और न्यायपूर्ण शासन की अपेक्षा की जाती है. सेंगोल संस्कृत शब्द शंकु यानि शंख से बना है. सेंगोल को भारतीय सम्राटों की शक्ति और अधिकार का प्रतीक माना जाता था. हम आपको बताते हैं कि सेंगोल सोने या चांदी का बनाया जाता है. इसे सभी प्रकार के कीमती पत्थरों से सजाया गया था. Sengol का प्रयोग सर्वप्रथम मौर्य साम्राज्य में किया गया था. उसके बाद चोल साम्राज्य और गुप्त साम्राज्य आया. इसका आखिरी बार मुगल साम्राज्य के दौरान इस्तेमाल किया गया था. हालांकि ईस्ट इंडिया कंपनी भी इसे भारत में अधिकार के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करती थी.

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सेंगोल में नंदी क्यों विराजमान हैं? | Why Nandi in Sengol
सेंगोल के शीर्ष पर आप भगवान शिव के प्रिय नंदी को देख सकते हैं. नंदी की मूर्ति उनके शिव परंपरा से संबंध का संकेत देती है. हिंदू धर्म में नंदी प्रतिमा के होने के और भी कई मायने हैं. नंदी को हिंदू और शिब परंपराओं में समर्पण का प्रतीक माना जाता है. यह बलिदान राजा और उसकी प्रजा दोनों का राष्ट्र के प्रति दायित्व है. दूसरा, शिव मंदिरों में नंदी हमेशा शिव के सामने एक निश्चित मुद्रा में विराजमान रहते हैं. हिंदू धर्म में मौजूद ब्रह्मांड की परिकल्पना शिवलिंग से की गयी है. सेंगुल से ऊपर की ओर नंदी की उपस्थिति को सरकार की स्थिरता का संकेत माना जाता है. वे कहते हैं कि इसका न्याय दृढ़ है और इसकी सरकार दृढ़ है. इसलिए नंदी को सिंगल के ऊपर स्थापित किया जाता है. गृह मंत्री अमित शाह ने सेंगोल को निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शासन का प्रतीक बताया.