हो गया कन्फ़र्म, 3 या 4 जून, कब मनाया जा रहा है पुर्णिमा वट सावित्री पूजा व्रत, जानिए सही तिथि और शुभ मुहूर्त सबकुछ

Haryana Update, Religious Desk: प्रत्येक माह की पूर्णिमा को बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को सबसे खास और पवित्र होती है। इस बार वट सावित्री पूर्णिमा 3 जून दिन शनिवार को मनाई जाएगी। कुछ जगहों पर इस पूर्णिमा को ज्येष्ठ पूर्णिमा भी कहते है। हिन्दू धर्म कि मान्यता के अनुसार इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति इस दिन पतित पावनी गंगा में स्नान करता है और उसके बाद दान करता है, तो उन्हे मनवांछित फल की प्राप्ति होती हैं। इस पूर्णिमा व्रत की पूजा करना भी वट सावित्री व्रत करने के समान है।
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत का शुभ मुहूर्त (Purnima Vrat 2023 Auspicious Time)
वट सावित्री पूर्णिमा की तिथि का प्रारंभ 3 जून 2023 को सुबह 11 बजकर 16 मिनट से हो रहा है.
सावित्री पूर्णिमा की तिथि वैट 4 जून 2023 को 09:11 बजे समाप्त हो रहा है।
उदयती के अनुसार वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत 3 जून को ही रखा जाता है।
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत पूजा करने का मुहूर्त (Vat Savitri Pujan Time)
पूजा का शुभ मुहूर्त 3 जून, शनिवार को 7:07 से 8:51 तक है।
दोपहर पूजा का समय 12:19 से 17:31 तक है।
आय वृद्धि मुहूर्त - 14:03 से 15:47 तक
अमृत - श्रेष्ठ मुहूर्त - 15:47 से 17:31 तक।
वट सावित्री पूर्णिमा शुभ योग (Vat Savitri Vrat Shubh Yog)
वट सावित्री पूर्णिमा के दिन तीन शुभ योग बनते हैं।
रवि योग - 05:23 से 06:16 तक
शिव योग - 2 जून 17:10 बजे से 3 जून 14:48 बजे तक।
सिद्ध योग - 4 जून को 14:48 से 11:59 तक।
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वट सावित्री पूर्णिमा व्रत पूजन का विधि-विधान (Vat Savitri Purnima Vrat Pujan Vidhan)
इस दिन महिलाओं को सुबह जल्दी उठकर स्नान करके नए वस्त्र धारण करने चाहिए और 16 श्रंगार करने चाहिए। शाम के समय वट सावित्री की पूजा करने के लिए विवाहित महिलाओं को बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री देवी की सच्चे मन से पूजा करनी चाहिए। पूजा के समय, महिलाओं को सभी प्रार्थना वस्तुओं को एक टोकरी में रखना चाहिए, पेड़ के नीचे जाना चाहिए और पेड़ के आधार पर पानी पीना चाहिए।
तत्पश्चात वृक्ष को प्रसाद चढ़ाने के बाद उसे सुगंधित होते हुए दिखाना चाहिए। इस दौरान आप बरगद के पेड़ को फूंक मारकर देवी सावित्री की पूजा कर सकते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रक्रिया के बाद विवाहित महिला बरगद के पेड़ को सात बार कच्चा रेशम या मोली बांधकर अपने पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य की कामना करती है। अंत में बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री सतीवन की कथा सुनें। इसके बाद घर जाकर अपने पति का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसी पंखे से पंखा करें। शाम को प्रसाद से बने फल और अन्य खाद्य पदार्थों का सेवन करने के बाद मीठे पदार्थों से व्रत तोड़ा जाता है।
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत का महत्व (Vat Savitri Vrat Importance)
जष्ट पूर्णिमा न केवल बर्नट दर्शन के लिए बल्कि स्नान, दान आदि के लिए भी महत्वपूर्ण है। दरअसल आज से भगवान जन्मनाथ के दर्शन के लिए अमरनाथ यात्रा में गंगाजल लाने का वास्तविक कार्य शुरू होता है। इसके अलावा पूर्णिमा के दिन गंगा में स्नान करना सबसे शुभ माना जाता है।