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Success tips! आचार्य चाणक्य से जानिये किस तरह संघर्ष को कम कर सफलता पायें !

Chanakya Niti: चाणक्य नीति को ज्ञान का सागर कहा जाता है। इसमें आचार्य चाणक्य ने जीवन के कई रहस्यों से पर्दा उठाया है। चाणक्य नीति में यह भी बताया गया है कि व्यक्ति किस तरह जीवन के संघर्ष को कम कर सकता है। इसपर जानिए आचार्य चाणक्य के विचार...
 
Success tips! आचार्य चाणक्य से जानिये किस तरह संघर्ष को कम कर सफलता पायें !
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Chanakya Niti: चाणक्य नीति को ज्ञान का सागर कहा जाता है। इसमें आचार्य चाणक्य ने जीवन के कई रहस्यों से पर्दा उठाया है। चाणक्य नीति में यह भी बताया गया है कि व्यक्ति किस तरह जीवन के संघर्ष को कम कर सकता है। बता दें कि आचार्य चाणक्य न केवल राजनीति, कूटनीति और युद्धनीति में निपुण थे, बल्कि जीवन के अन्य महत्वपूर्ण विषयों का भी उन्हें विस्तृत ज्ञान था।

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उन्होंने अपनी नीतियों (Chanakya Neeti) के माध्यम से अनगनित युवाओं का मार्गदर्शन किया था और आज भी उनकी नीतियों को सफलता की कुंजी के रूप में पढ़ा जाता है। आचार्य जी ने चाणक्य नीति में यह भी बताया था कि व्यक्ति को अपने जीवन में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और पालन करना चाहिए। आइए जानते हैं-


चाणक्य नीति से जानिए सफल जीवन का रहस्य (Chanakya Niti in Hindi)

यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निर्घषणच्छेदन तापताडनैः ।

तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा ।।

अर्थात- जिस तरह सोने का परिक्षण घिसने, कटने, तापने और पीटने, इन चार चीजों से किया जाता है। इसी तरह व्यक्ति की परीक्षा उसके त्याग, शील, गुण और कर्म भाव से किया जाता है। इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य बता रहे हैं कि कि जिस तरह असली सोने को अपनी प्रमाणिकता देने के लिए कई प्रकार के जांच से गुजरना पड़ता है। ठीक उसी तरह एक श्रेष्ठ व्यक्ति को उसके स्वाभाव और त्याग के भाव से पहचाना जाता है और समय-समय पर उसकी परीक्षा ली जाती है। इसलिए हर व्यक्ति के स्वभाव में मधुरता और दया का भाव होना बहुत जरूरी है।

त्यजेद्धर्म दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत् ।

त्यजेत्क्रोधमुखी भार्या निःस्नेहान्बान्धवांस्यजेत् ।।

अर्थात- किसी भी धर्म में यदि दया भाव ना हो तो उसे शीघ्र अति शीघ्र त्याग देना चाहिए। इसके साथ व्यक्ति को विद्याहीन गुरु, क्रोधी और स्नेहहीन स्वाभाव के बंधुजनों को भी त्याग देना चाहिए।

ऐसा इसलिए क्योंकि दया भाव न होने पर विनाश निश्चित हो जाता है। इसके साथ परिवार के सदस्यों में प्रेम ना होने पर व्यक्ति को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसा देखा जाता है कि जरूरत या विषम स्थिति में परिवार ही साथ देता है। लेकिन स्नेहहीन बंधुजनों से मदद की अपेक्षा तो दूर, सांत्वना भी नहीं मिलती है।

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