Supreme Court का किराएदारों पर सख्त रुख, किराया न देने पर आया बड़ा फैसला

मामले का संक्षिप्त विवरण Supreme Court
इस मामले में, एक किराएदार ने अपने मकान मालिक को सिर्फ एक या दो माह का किराया नहीं दिया, बल्कि पूरे तीन साल का किराया चुकाने से इंकार कर दिया था। इससे पहले मकान मालिक ने कई बार किराएदार को चेतावनी दी थी कि किराया जमा करें और अपनी संपत्ति खाली करें। लेकिन किराएदार ने इन चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए मकान मालिक के आदेश को ठुकरा दिया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए इस मामले में, अदालत ने मकान मालिक के पक्ष में एक निर्णायक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किराएदार को किसी भी प्रकार की राहत नहीं दी जा सकती है। कोर्ट का कहना था कि किराएदार को अब अपने बकाया किराये की राशि तुरंत जमा करनी होगी और मकान भी खाली करना अनिवार्य है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि कानून के तहत दोनों पक्षों के अधिकार निर्धारित हैं, और यदि कोई पक्ष नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे सख्त दंड भुगतना पड़ेगा।
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किराएदार के लिए समय की मांग खारिज Supreme Court
मामले में, किराएदार के वकील ने बकाया किराया जमा करने के लिए कुछ अतिरिक्त समय की गुजारिश की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस अनुरोध को खारिज कर दिया। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि किराएदार ने पहले ही मकान मालिक को काफी परेशान किया है, इसलिए उसे कोई छूट नहीं दी जा सकती। इसका मतलब यह है कि अब किराएदार को बिना किसी और समय के, जितना जल्दी हो सके बकाया किराया जमा करना होगा और मकान मालिक को पूरी तरह से खाली करना होगा।
निचली अदालत का पूर्व निर्णय Supreme Court
यह मामला पहले निचली अदालत में भी आया था, जहां मकान मालिक के पक्ष में फैसला हुआ था। उस समय भी किराएदार को मकान खाली करने के साथ-साथ बकाया किराया जमा करने का आदेश दिया गया था। निचली अदालत ने किराएदार को दो माह का समय दिया था और साथ ही यह भी कहा था कि अब तक के दौरान 35,000 रुपये प्रति माह के हिसाब से किराया चुकाया जाना चाहिए। हालांकि, इन आदेशों की अवहेलना करने के कारण मामला अंततः सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा।
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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का कदम और याचिका का खारिज होना Supreme Court
तीन साल तक का किराया न देने के अलावा, किराएदार ने मकान खाली करने से भी इनकार किया था। मकान मालिक ने इस परिस्थिति में मामला आगे बढ़ाया और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की थी। वहां भी किराएदार को कोई राहत नहीं मिली और हाईकोर्ट ने मकान के बकाया किराये की राशि 9 लाख रुपये जमा कराने का आदेश दिया, जिसमें कुछ महीनों का समय भी दिया गया था। इन आदेशों के बावजूद जब किराएदार ने अपनी बात नहीं मानी, तो उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट ने अंततः किराएदार की याचिका को खारिज करते हुए मकान मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया।