Supreme Court : EMI नहीं चुकाने पर सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी चेतावनी, जानिए डिटेल

Delhi High Court में पति ने कहा- Supreme Court
ससुराल वालों पर इनकम टैक्स की रेड, शादी में दिए गए 2 करोड़ का मामला भी चर्चा में रहा।
जानिए इस कानूनी प्रावधान को- Supreme Court
कानूनी तौर पर यह निर्धारित किया गया है कि कार लोन लेने वाले को कार की किस्त (Loan EMI) समय पर ही चुकानी होगी। यदि ऐसा न हो, तो फाइनेंसर के पास अधिकार होता है कि वह बिना किसी देरी के कार्रवाई शुरू कर सके। जब तक लोन की सभी किस्तें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक कार का स्वामित्व बैंक या फाइनेंसिंग कंपनी के पास ही बना रहता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि लोन डिफॉल्ट होने या किस्तों की देरी पर फाइनेंसर द्वारा वाहन पर कब्जा करना किसी आपराधिक कार्रवाई के अंतर्गत नहीं आता।
सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला- Supreme Court
अम्बेडकर नगर के एक युवक ने लगभग 12 साल पहले, 2013 में फाइनेंस पर एक गाड़ी खरीदी थी। इस खरीद के दौरान उसने 1 लाख रुपये की डाउनपेमेंट कर दी थी और शेष राशि के लिए लोन लिया था। युवक को हर महीने लगभग 12,530 रुपये की किस्त चुकानी थी। शुरू में उसने किस्तें समय पर भरना शुरू किया, लेकिन कुछ समय बाद वह किस्तें भरना बंद कर दिया। लोन देने वाली कंपनी ने पहले 5 महीनों तक इंतजार किया, लेकिन फिर भी जब समय पर भुगतान न हुआ, तो कंपनी ने गाड़ी वापस ले ली। इसके बाद मामला निचली अदालत से गुजरकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
कंज्यूमर कोर्ट का फैसला- Supreme Court
गाड़ी जब्त किए जाने के बाद ग्राहक ने उपभोक्ता अदालत में केस दर्ज कराया। कंज्यूमर कोर्ट ने फाइनेंसर कंपनी के खिलाफ फैसला सुनाते हुए यह कहा कि बिना नोटिस दिए गाड़ी उठाना गलत है और ग्राहक को किस्तें भरने का पूरा अवसर प्रदान करना चाहिए था। इसके चलते फाइनेंसर कंपनी पर 2 लाख रुपये से अधिक का जुर्माना भी ठोका गया। बाद में फाइनेंसर कंपनी ने मामले को अगली अदालत में ले जाने का प्रयास किया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला- Supreme Court
फाइनेंसर कंपनी ने सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने माना कि गाड़ी खरीदने वाला कर्जदार डिफॉल्टर था, क्योंकि उसने शुरू की 7 किस्तें भरने के बाद 5 महीने तक किस्तों का भुगतान नहीं किया। लोन लेनदार ने भी इस बात को स्वीकार किया। कंपनी द्वारा काफी प्रतीक्षा के बाद गाड़ी को जब्त करना सही ठहराया गया और इसे कोई अपराध नहीं माना जाएगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फाइनेंसर पर लगाए गए जुर्माने को रद्द कर दिया, परंतु नोटिस न देने के कारण ग्राहक को 15,000 रुपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया गया।
लोन रिकवरी के लिए नियम- Supreme Court
लोन डिफॉल्ट होने के बाद लोन रिकवरी के लिए कई नियम लागू होते हैं। लोन लेनदार के पास कुछ अधिकार होते हैं और लोन रिकवरी एजेंट पर कर्जदार के साथ दुर्व्यवहार करने की मनाही है। इसके अलावा, रात के समय में ग्राहक के पास जाकर या कॉल करके संपर्क करना भी अनुमति नहीं है। इन नियमों के तहत कई कानूनी प्रावधान भी शामिल हैं।
लोन डिफॉल्ट पर कानूनी प्रावधान- Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट ने लोन लेने वालों को राहत देते हुए कहा है कि किसी भी लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने से पहले बैंकों और फाइनेंसिंग कंपनियों को लोन लेनदार को इसकी सूचना देनी होगी। लोन लेनदार को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाएगा कि वह किस कारण लोन या EMI भरने में असमर्थ रहा है और कब से भुगतान फिर से शुरू कर सकता है। तभी समाधान न निकलने पर ही उचित कार्रवाई की जा सकती है। बिना सूचित किए किसी पर डिफॉल्टर घोषित करने से ग्राहक का CIBIL स्कोर खराब हो सकता है, इसलिए बैंक को एकतरफा कार्रवाई नहीं करनी चाहिए।
बैंक सीधे ही नहीं उठा सकते यह कदम- Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई लोन चुकाने या EMI भरने में असमर्थ रहता है, तो पुलिस में शिकायत दर्ज कराने से पहले या प्राथमिकी दर्ज होने से पहले डिफॉल्टर या फ्रॉड घोषित करने की कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। ऐसा करने से कर्जदार को ब्लैकलिस्ट करने जैसा प्रभाव पड़ता है, जिससे भविष्य में ग्राहक को कई वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। नियमों के अनुसार ही उचित कार्रवाई करते हुए बैंक या फाइनेंसिंग कंपनी को कदम उठाना चाहिए