logo

Property Rights: दादा की पैतृक संपत्ति में पोते का कितना हक? जानें कानूनी प्रावधान!

Property Rights: दादा की पैतृक संपत्ति में पोते का कितना अधिकार होता है, इसे लेकर कई लोगों के मन में सवाल होते हैं। भारतीय कानून में इस संबंध में स्पष्ट प्रावधान हैं, जो बताते हैं कि पोते को दादा की संपत्ति में किस आधार पर अधिकार मिल सकता है। अगर आप भी अपने अधिकारों को जानना चाहते हैं, तो नीचे पढ़ें पूरी डिटेल।
 
Property Rights: दादा की पैतृक संपत्ति में पोते का कितना हक? जानें कानूनी प्रावधान!
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Haryana update, Property Rights: पैतृक संपत्ति से जुड़े अधिकार अक्सर विवादों का कारण बनते हैं, क्योंकि इसके रिकॉर्ड पुराने होते हैं और कानूनी जानकारी भी सीमित होती है। यहां कुछ मुख्य बातें हैं:
  1. पैतृक संपत्ति का अर्थ:

    • पैतृक या पुश्तैनी संपत्ति वह संपत्ति है जो किसी व्यक्ति को उसके पिता, दादा या परदादा आदि से विरासत में मिली होती है।
    • इसमें हिस्सेदारी जन्म से ही तय हो जाती है और यह वारिसों के अन्य तरीके से अलग होती है, जहाँ संपत्ति का दावा केवल मृत्यु के बाद खुलता है।
  2. नाती-पोते का अधिकार:

    • दादा की विरासत में मिलने वाली संपत्ति पर पोते-पोतियों का जन्म के साथ ही पूरा अधिकार होता है, चाहे उनके पिता या दादा की मृत्यु हो चुकी हो।
    • कानून के अनुसार, परिवार में नाती-पोते को समान हिस्सेदारी दी जाती है। यदि कोई परिवार सदस्य नाती-पोते का हक देने से इनकार करता है, तो नाती न्यायालय में याचिका दायर कर अपनी हिस्सेदारी के लिए दावा कर सकते हैं।
  3. स्व-अर्जित संपत्ति बनाम पैतृक संपत्ति:

    • यदि दादा ने अपनी मेहनत से अर्जित संपत्ति को अपने पुत्र के नाम पर विभाजन के दौरान आवंटित किया है, तो पोते-पोतियों का उस पर जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता।
    • हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, स्व-अर्जित संपत्ति में वारिस का दावा केवल तब ही हो सकता है जब वह संपत्ति पिता द्वारा आवंटित की गई हो।
  4. वसीयत के बिना विरासत:

    • यदि दादा बिना किसी वसीयत के मर जाते हैं, तो उनकी पत्नी, पुत्र और पुत्रियाँ ही उस संपत्ति पर अधिकार रखती हैं।
    • ऐसी स्थिति में विरासत में मिली संपत्ति को उनकी निजी संपत्ति माना जाएगा, और किसी अन्य का दावा नहीं होगा।

इस प्रकार, पैतृक संपत्ति में अधिकार मुख्य रूप से पहले से निर्धारित हिस्से के आधार पर होते हैं। परिवार के हर सदस्य को जन्म से ही उसका हक सुनिश्चित हो जाता है, और यदि कोई सदस्य अपने हिस्से का दावा करने से इनकार करता है, तो कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से उसे प्राप्त किया जा सकता है।