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हरियाणा सरकार का तगड़ा कदम, जाति प्रमाण पत्र बनेगा सिरदर्द इन वर्गों के लिए!

हरियाणा सरकार ने जाति प्रमाण पत्र को लेकर कड़े नियम लागू करने का फैसला लिया है, जिससे कुछ वर्गों को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। अब जाति प्रमाण पत्र के लिए नई प्रक्रिया शुरू की जाएगी, जिसमें आवेदनकर्ताओं को सख्त दस्तावेज़ी जांच और अतिरिक्त प्रमाण प्रस्तुत करने होंगे। इस कदम का उद्देश्य जाति प्रमाण पत्र की गलत उपयोग और धोखाधड़ी को रोकना है, लेकिन इससे वर्ग विशेष को परेशानियों का सामना हो सकता है।
 
हरियाणा सरकार का तगड़ा कदम, जाति प्रमाण पत्र बनेगा सिरदर्द इन वर्गों के लिए!
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Haryana update : हरियाणा सरकार ने जाति प्रमाण पत्र को लेकर एक बड़ा निर्णय लिया है, जिसके तहत प्रदेश में अनुसूचित जाति (SC) के तहत आने वाली कई जातियों को अब नए नियमों के तहत डीएससी प्रमाण पत्र (Deprived Scheduled Caste) बनवाने की आवश्यकता होगी। इस बदलाव के बाद, पहले जिन जातियों के लोग अनुसूचित जाति (SC) के तहत आते थे, उन्हें अब अपने जाति प्रमाण पत्र में बदलाव करवाना होगा। यह फैसला उन लोगों के लिए चौंकाने वाला हो सकता है, जो अब तक सरकारी योजनाओं और आरक्षण का लाभ ले रहे थे। इसके बिना, अब उन्हें कोई सरकारी योजना या अधिकार नहीं मिलेगा।

जातियों का विभाजन
हरियाणा सरकार ने अनुसूचित जातियों को अब दो भागों में बांटने का ऐलान किया है। इन बदलावों के बाद, जिन जातियों के लोग पहले अनुसूचित जाति के तहत आते थे, उन्हें अब नए डीएससी प्रमाण पत्र की आवश्यकता होगी। इस नई नीति में शामिल की गई जातियों में निम्नलिखित जातियां शामिल हैं:

  • धानक, सिकलीगर, बैरिया, सिरकीबंद, सपेला, सपेरा, सरेरा, सांसी, भेड़कुट, मनेश, सनसोई, सनहाई, सनहाल, पेरना, फेरेरा, ओड, पासी, नट, बड़ी, मेघ, मेघवाल, मारिजा, मारेचा, मजहबी, मजहबी सिख, खटीक, कोरी, कोली, कबीरपंथी, जुलाहा, गांधीला, गांडील, गोंडोला, डुमना, महाशा, डूम, गागरा, धर्मी, ढोगरी, धांगरी, सिग्गी, दारैन, देहा, धाय, धीया, भंजरा, चनाल, दागी बटवाल, बरवाला, बौरिया, बावरिया, बाजीगर, बाल्मीकि, और बंगाली।

आवश्यकता क्यों पड़ी
सरकार का कहना है कि यह बदलाव समाज में बराबरी लाने के लिए किया गया है, ताकि उन जातियों के लोग जिन्हें अब तक एससी का लाभ मिल रहा था, वे सही तरीके से पहचान पा सकें। हालांकि, कई लोग इस नीति के कारण सभी योजनाओं और आरक्षण के अधिकारों में कमी महसूस कर रहे हैं। यह फैसले उन लोगों के लिए बड़ी चिंता का कारण बन गए हैं, जो पहले से इन जातियों का हिस्सा हैं और लंबे समय से सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे थे।

सरकार का तर्क है कि यह कदम समाज में अधिक समानता लाने के लिए है, ताकि जो लोग आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से सबसे अधिक पिछड़े हुए हैं, वे पहले से ज्यादा फायदे और अवसरों का लाभ उठा सकें। लेकिन यह बदलाव उन लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है, जो इसे अपनी पहचान और अधिकारों का हनन मानते हैं।

आवेदन के लिए जरूरी दस्तावेज
अब, यदि आप इन जातियों से ताल्लुक रखते हैं और नए डीएससी प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करना चाहते हैं, तो कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेजों की आवश्यकता होगी। यह दस्तावेज़ पहले से थोड़े बदल चुके हैं और सरकारी अधिकारियों का कहना है कि अब राज्य का मूल निवासी होना अनिवार्य होगा। इसके अलावा, आवेदन करने के लिए निम्नलिखित दस्तावेज़ आवश्यक होंगे:

  1. फैमिली आईडी
  2. आधार कार्ड
  3. फैमिली आईडी से जुड़ा मोबाइल नंबर

यदि आपके पास ये सभी दस्तावेज़ नहीं हैं, तो जाति प्रमाण पत्र बनवाना अब नामुमकिन हो सकता है। सरकार ने इस प्रक्रिया पर कड़ी निगरानी शुरू कर दी है, और यदि आपने पहले इस प्रक्रिया में कोई गलती की थी, तो अब आपको इन सभी दस्तावेज़ों के साथ अपनी स्थिति सही करनी होगी।

कैसे करें आवेदन?
जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए, सबसे पहले आपको सरल हरियाणा की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाना होगा। यहां जाकर आपको अपना रजिस्ट्रेशन करना होगा। इसके बाद आपको DSC सर्टिफिकेट अप्लाई का ऑप्शन मिलेगा, जिस पर क्लिक करना होगा। इसके बाद आप लॉगिन प्रक्रिया पूरी करें और आवेदन फॉर्म में अपनी सारी महत्वपूर्ण जानकारी भरें। आवेदन सबमिट करने के बाद, आपकी जानकारी संबंधित विभाग को भेज दी जाएगी। यदि सब कुछ सही तरीके से गया, तो आपको कुछ ही दिनों में अपना डीएससी प्रमाण पत्र मिल जाएगा।

प्रभावित होंगे ये लोग
इस बदलाव से उन जातियों के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, जो अब तक अनुसूचित जाति के तहत आते थे और आरक्षण का लाभ ले रहे थे। अब उन्हें डीएससी प्रमाण पत्र बनवाना होगा, वरना वे सरकारी योजनाओं और आरक्षण से वंचित हो जाएंगे। यह बदलाव उन लोगों के लिए समस्याएं पैदा कर सकता है, जो सरकारी लाभ के लिए पहले से ही इस श्रेणी में थे।

यह निर्णय सरकार के लिए एक सामाजिक सुधार का हिस्सा हो सकता है, लेकिन इसके कारण कई लोगों को यह महसूस हो सकता है कि उनके अधिकारों में कमी आ गई है। इसलिए, इस बदलाव से लोग विरोध कर सकते हैं और इसे अपनी पहचान और अधिकारों का ह्रास मान सकते हैं।