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हरियाणा के कच्चे कर्मचारियों को मिला न्याय, हाईकोर्ट ने कर्मचारियों के हक में सुनाया बड़ा फैसला

हरियाणा के कच्चे कर्मचारियों को आखिरकार न्याय मिला है, जब राज्य हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने आदेश दिया है कि कच्चे कर्मचारियों को स्थायी रोजगार दिया जाए और उन्हें समान कार्य के लिए समान वेतन मिले। इस फैसले से लाखों कर्मचारियों को राहत मिलेगी और उनके रोजगार अधिकारों को मान्यता मिलेगी। जानें इस फैसले की पूरी जानकारी और इससे कर्मचारियों को कैसे लाभ होगा।

 
हरियाणा के कच्चे कर्मचारियों के लिए बड़ी खुशखबरी, हाईकोर्ट का अहम फैसला
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Haryana update : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य के कच्चे कर्मचारियों के लिए एक राहत भरा और महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कच्चे कर्मचारियों को नियमित करने का आदेश दिया है, जिससे राज्य भर में काम कर रहे हजारों अनुबंध, अंशकालिक और अस्थायी कर्मचारियों को बड़ा फायदा मिलेगा। कोर्ट ने यह आदेश दिया है कि सभी कर्मियों को निर्धारित प्रक्रिया के तहत 2003 और 2011 की नीति के आधार पर छह महीने के अंदर नियमित किया जाए।

कर्मचारियों की नियमितीकरण की मांग

हरियाणा सरकार के विभिन्न विभागों, नगर निगमों और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में काम कर रहे हजारों कर्मचारियों ने अपनी सेवा नियमित करने के लिए हाईकोर्ट में 151 याचिकाएं दायर की थीं। ये कर्मचारी कई दशकों से अनुबंध, अंशकालिक या अस्थायी रूप से काम कर रहे थे और उन्होंने 1996, 2003 और 2011 की नीतियों के तहत अपनी नियमितीकरण की मांग की थी।

हाईकोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि उन कर्मचारियों को, जिन्होंने निर्धारित प्रक्रिया के तहत काम किया है, उन्हें 2003 और 2011 की नीति के आधार पर छह महीने के अंदर नियमित किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई कर्मचारी इन नीतियों के तहत योग्य पाया जाता है, तो उसे कोर्ट में याचिका दायर करने की तारीख से बकाया वेतन मिलेगा, हालांकि इस पर ब्याज नहीं दिया जाएगा। इसके अलावा, जो कर्मचारी पहले ही रिटायर हो चुके हैं, उनकी पेंशन और अन्य वित्तीय लाभों का पुनर्निर्धारण किया जाएगा।

2014 की नीति पर निर्णय

हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 2014 की नीति के तहत नियमित हुए कर्मचारियों को किसी अन्य नीति के तहत कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलेगा। जिन कर्मचारियों को 2003 और 2011 की नीति के तहत पात्र नहीं पाया गया, उनके मामले को 2024 में लागू किए गए नए अधिनियम के तहत विचार किया जाएगा। इसके अलावा, 2014 की नीति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले के बाद ही उन कर्मचारियों के बारे में फिर से विचार किया जाएगा।

2014 की अधिसूचना पर सख्त टिप्पणी

हाईकोर्ट ने 2014 की अधिसूचना पर कड़ी टिप्पणी करते हुए इसे सुप्रीम कोर्ट के 2006 के उमा देवी फैसले के खिलाफ बताया। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए 2011 की नीति लागू की थी, लेकिन 2014 की अधिसूचना बिना किसी ठोस आधार के थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी कर्मचारी बिना कारण अपने अधिकार से वंचित न हो।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन

कोर्ट ने यह साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए केवल उन्हीं कर्मचारियों को नियमित किया जा सकता है जिनकी नियुक्ति उचित प्रक्रिया के तहत हुई हो और जो पहले से जारी नीतियों के तहत पात्र हों। यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करना होगा और कर्मचारियों को उनके अधिकार दिलाने के लिए कार्रवाई करनी होगी।

हाईकोर्ट का यह निर्णय हरियाणा के कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है। अब वे कर्मचारी जो कई वर्षों से अस्थायी या अनुबंध के आधार पर काम कर रहे थे, उन्हें अब स्थायी नियुक्ति का मौका मिलेगा। इस फैसले से राज्य सरकार को भी यह संदेश जाता है कि कर्मचारियों के अधिकारों का सम्मान करना आवश्यक है और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।