Crude Oil Price: कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट, 4 साल का न्यूनतम स्तर
कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट, जो 4 वर्षों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। जानें इसके पीछे के प्रमुख कारण, जैसे OPEC+ का उत्पादन बढ़ाना और वैश्विक आर्थिक मंदी के संकेत।

Haryana update : तेल उत्पादक देशों के समूह OPEC+ ने जून में 4.11 लाख बैरल प्रतिदिन (bpd) सप्लाई बढ़ाने का ऐलान किया है। इससे मई और जून मिलाकर बाजार में 8 लाख bpd की अतिरिक्त सप्लाई हो जाएगी। इस फैसले के बाद तेल की कीमतों में भारी गिरावट देखी गई है। अमेरिकी कच्चा तेल (WTI) 4% गिरा, जबकि ब्रेंट क्रूड करीब 3.79% टूटकर 58.79 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है।
गोल्डमैन सैक्स का अनुमान गलत साबित
गोल्डमैन सैक्स ने जून में केवल 1.4 लाख bpd अतिरिक्त उत्पादन की उम्मीद की थी, लेकिन वास्तविक सप्लाई इससे तीन गुना ज्यादा रही। ये अप्रत्याशित बढ़ोतरी वैश्विक तेल बाजार को हिला गई है।
गिरावट के और भी कारण
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता पैदा की है। मंदी के डर से मांग घटने का अंदेशा है, जिससे उपभोक्ता खर्च और औद्योगिक उत्पादन धीमा हो सकता है।
2021 के बाद सबसे बड़ी गिरावट
तेल के दामों में अप्रैल 2025 में 2021 के बाद सबसे बड़ी मासिक गिरावट दर्ज की गई है। इससे Exxon और Chevron जैसी दिग्गज कंपनियों के मुनाफे पर नकारात्मक असर पड़ा है।
उद्योग में निवेश पर ब्रेक
बेक्कर ह्यूजेस और SLB जैसी ऑयलफील्ड सर्विस कंपनियों का कहना है कि सप्लाई बढ़ने, वैश्विक अनिश्चितता और सऊदी अरब में सुस्त गतिविधियों के कारण निवेश थमने लगा है।
भविष्य का अनुमान
गोल्डमैन सैक्स के मुताबिक 2025 में WTI क्रूड का औसत $59 और ब्रेंट क्रूड का औसत $63 प्रति बैरल रह सकता है। अगर सप्लाई ऐसे ही जारी रही और मांग नहीं बढ़ी, तो कीमतें और नीचे जा सकती हैं।
भारत को क्या फायदा होगा?
भारत अपनी जरूरत का 85% कच्चा तेल आयात करता है। ऐसे में क्रूड की कीमतों में गिरावट से देश को बड़ा आर्थिक लाभ होगा:
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आयात बिल में कमी: सस्ते दाम पर ज्यादा तेल मिल सकेगा।
उदाहरण: अगर $80 के बजाय $55 में प्रति बैरल तेल मिले, तो $25 की बचत होगी। -
अरबों डॉलर की बचत: भारत हर साल लगभग 4.6 मिलियन बैरल प्रतिदिन तेल आयात करता है, जिससे कुल बचत अरबों डॉलर में हो सकती है।
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महंगाई पर काबू: फ्यूल सस्ता होने से ट्रांसपोर्ट, खाद्य सामग्री और अन्य सेवाओं की लागत घट सकती है।