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Court Order: क्या विधवा बहू ससुर से मांग सकती है गुजारा-भत्ता, कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला

Court Order: हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि ससुर को अपनी विधवा बहू को भरण-पोषण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 और मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए यह निर्णय लिया।
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Court Order: क्या विधवा बहू ससुर से मांग सकती है गुजारा-भत्ता, कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला
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Haryana update, Court Order: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि ससुर अपनी विधवा बहू को भरण-पोषण देने के लिए बाध्य नहीं है। कोर्ट का यह फैसला घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 और मुस्लिम पर्सनल लॉ (बशीर खान बनाम इशरत बानो) के आधार पर लिया गया है।

क्या था मामला?

यह मामला एक विधवा बहू के द्वारा अपने ससुर से भरण-पोषण की मांग करने से जुड़ा था। रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता एक बुजुर्ग व्यक्ति है, जो मुस्लिम समुदाय से संबंधित है। 2011 में याचिकाकर्ता के बेटे की शादी हुई थी, लेकिन 2015 में बेटे का निधन हो गया। इसके बाद, उनकी विधवा बहू ने ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज किया और मासिक भरण-पोषण के रूप में 40,000 रुपये की मांग की।

निचली अदालत का आदेश और याचिका

निचली अदालत ने महिला के हक में फैसला देते हुए ससुर को 3,000 रुपये महीने का भरण-पोषण देने का आदेश दिया। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने सत्र न्यायालय में इस आदेश को चुनौती दी, लेकिन वहां भी उसकी अपील खारिज हो गई। फिर याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ता के वकील का तर्क

याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि चूंकि वह मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आता है, इसलिए उस पर अपनी विधवा बहू को भरण-पोषण देने का कोई दायित्व नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भी ऐसा कोई दायित्व नहीं होने की बात की। वकील ने इस मामले में कई उच्च न्यायालयों के फैसलों का हवाला दिया, जिसमें इसी प्रकार के मामलों में भरण-पोषण की मांग को खारिज किया गया था।

उच्च न्यायालय का फैसला

उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ और घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों के तहत ससुर को अपनी विधवा बहू को भरण-पोषण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को गलत ठहराया और भरण-पोषण के आदेश को रद्द कर दिया।

फैसले के महत्व

यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह स्पष्ट हो गया है कि एक व्यक्ति, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय से संबंधित बुजुर्ग ससुर, अपनी विधवा बहू को भरण-पोषण देने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है। यह फैसला इस तरह के मामलों में अदालत के दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है और आगे के मामलों में मार्गदर्शन प्रदान करेगा