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भैरव बाबा के मंदिर मे क्यों चढ़ाई जाती है शराब? क्या जानते हैं आप

भैरव बाबा के मंदिर में शराब चढ़ाने की परंपरा का संबंध हिंदू धार्मिक मान्यताओं और भैरव बाबा की विशेष पूजा विधि से है। भैरव बाबा को भगवान शिव के रूप में पूजा जाता है और उन्हें शैव परंपरा में एक उग्र रूप में माना जाता है।
 
भैरव बाबा के मंदिर मे क्यों चढ़ाई जाती है शराब? क्या जानते हैं आप

भैरव बाबा का स्वरूप युद्ध, शक्ति और नियंत्रण का प्रतीक माना जाता है, और उनके भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए विशेष प्रकार की पूजा करते हैं। शराब चढ़ाने का यह रिवाज कुछ विशेष कारणों से जुड़ा है:

1. भैरव बाबा के उग्र रूप का सम्मान
भैरव बाबा का स्वरूप उग्र और शक्तिशाली माना जाता है, और वह ऐसे देवता माने जाते हैं जो मानवीय इच्छाओं और भय को नष्ट करने में सक्षम होते हैं। उनकी पूजा में शराब चढ़ाना एक तरह से उनके उग्र रूप का सम्मान करना होता है। यह विश्वास किया जाता है कि शराब भैरव बाबा को प्रसन्न करने में सहायक होती है, क्योंकि वह भोग और माया से ऊपर होते हुए भी संसारिक पदार्थों को स्वीकार करते हैं।

2. शक्ति का प्रतीक
भैरव बाबा को प्रसन्न करने के लिए, भक्त इसे एक बल और ऊर्जा के रूप में चढ़ाते हैं। यह भैरव बाबा के शक्तिशाली रूप को प्रसन्न करने का एक तरीका है।

3. भूत-प्रेत से मुक्ति
कुछ स्थानों पर यह मान्यता है कि भैरव बाबा बुरी शक्तियों, भूत-प्रेत और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने वाले देवता हैं। शराब चढ़ाने से यह प्रतीक माना जाता है कि भक्त अपनी बुराई और नकारात्मकताओं को त्याग कर उनसे मुक्ति प्राप्त करते हैं।

4. लोक परंपरा और विश्वास
कुछ जगहों पर यह परंपरा लोक विश्वास और पुराने रिवाजों के आधार पर चली आ रही है। समय के साथ यह परंपरा बनी रही है, भले ही इसका वैज्ञानिक या आध्यात्मिक आधार स्पष्ट न हो।

5. पारंपरिक बलिदान और अर्पण
प्राचीन काल में, विशेष रूप से शैव परंपरा में, बलिदान (यज्ञों और अर्पणों) के रूप में शराब का अर्पण एक सामान्य परंपरा थी। यह मान्यता थी कि शराब अर्पित करने से देवता को खुश किया जा सकता है और जीवन में सुख-शांति प्राप्त हो सकती है।

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हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि शराब का अर्पण सभी भैरव मंदिरों में नहीं किया जाता और यह क्षेत्रीय परंपराओं पर निर्भर करता है। कई स्थानों पर यह परंपरा विद्यमान है, जबकि अन्य जगहों पर अन्य प्रकार की सामग्री जैसे फल, मिठाई या फूल चढ़ाने की परंपरा है।

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