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Bhai Panchami 2025: कब है भाई पंचमी, जानिए इसकी कहानी और महत्व सबकुछ

Bhai Panchami 2025: वैसे तो सावन महीने की कृष्ण पंचमी को भाई पंचमी मनाई जाती है जोकि 15 जुलाई 2025 को थी, लेकिन जो इस त्योहार को नहीं मना पाये वो चिंता न करें। आप सावन शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी के दिन भी भाई पंचमी मना सकते हैं। इस बार नाग पंचमी 2025 (भाई पंचमी 2025) 29 जुलाई को मना सकते हैं।\
 
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नाग पंचमी 2025: धार्मिक दृष्टि से सावन का महीना अत्यंत पावन होता है जो भगवान शिव को अति प्रिय है। इस माह में अनेक व्रत एवं त्यौहार होते है और इन्ही में से एक है नाग पंचमी का त्योहार। नाग पंचमी को भाई पंचमी भी मनाई जाती है। इस दिन पूजा करने की क्या विधि है आइए जानते हैं।

नाग पंचमी 2025 की तिथि एवं मुहूर्त: 29 जुलाई 2025 (सुबह 6:00 बजे से लेकर 8:40 शाम तक)

सावन कृष्ण पंचमी के दिन को भाई पंचमी कहते हैं। इस दिन चने, मूंग शाम को चौथ के दिन भिगो दें और पहले दिन ठंडी रोटी करवास बनाएं। एक जेवड़ी में 7 गांठ लगाएं। कांटे वाले पेड़ पर चने पिरोए तथा जेवड़ी भी उस पर चढ़ा दें। जल, कच्चा दूध उस पेड़ पर चढ़ाएं। भीगे चने और मूंग भी उस पर चढ़ा दें। पूजा करने के बाद कहानी सुनो तथा बायना निकालना चाहिए। अपनी सास के पैर छूकर बायना दें।

नाग पंचमी विधि: सुबह उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प लें। मंदिर जाकर शिवलिंग या नाग नागिन की प्रतिमा पर पर गाय का दूध चढ़ाएँ। तत्पश्चात रोली, धूप दीप और तिलक लगाकर पूजा करें।

(भाई पंचमी की कहानी) (Bhai Panchami Story)

एक साहूकार के सात बेटे, सात बहू थी। सातों बहुए कुएं से पानी लेने गई। सातवीं का कोई पीहर नहीं था। 6 बहुएं कुएं से पानी भरने गई तो आपस में बात करने लगी कि जल्दी जल्दी पानी भर लो। बाद में धोक मारने जाना है। कुएं पर एक औरत बोली कि तेरी जिठानी क्या कर रही है। वह छहों बहुएं बोली- वह चरखा काट रही होगी। उसे क्या पता कि भैया पंचमी क्या है। उसके तो कोई भाई नहीं है। सारी बातें एक सर्प सुनकर उन छहों बहुओं के पीछे पीछे चल पड़ा। घर में आकर आदमी का रूप लिया और सातवीं बहू से कहा- बहन राम राम! वह कहने लगी कि मेरे तो कोई भाई नहीं था। तू भाई कहां से आ गया। भाई बोला बहन तेरी शादी के बाद मेरा जन्म हुआ। इसलिए तुम मुझे नहीं जानती। वह अपनी सास से पूछने गई कि मेरा भाई आया है क्या बनाऊं! सांस कहने लगी कि तेल से चूल्हा लीप ले और तेल में ही चावल चढ़ा दे। ना चूल्हा सूखा, ना ही चावल पके। पड़ोसन से पूछने गई तो पड़ोसी ने बताया कि मिट्टी से चूल्हा लीप ले और पानी में चावल पका ले। फिर चावल-दाल बन के तैयार हो गई। फिर उसने अपने भाई को चावल दाल और घी -बुरा से भाई को जिमाया और भाई बोला कि बहन मैं तुझे घर ले जाने आया हूं। बहन को साथ लेकर जब भाई जंगल में जाकर बहन से बोला कि अब मैं सर्प बनूंगा। तुम डरना नहीं मेरी पूछ पकड़ कर बाबी के अंदर मेरे पीछे पीछे आ जा। बाबी में पहुंचने के बाद भाई बहन कहने लगे कि हमारी बहन आई है तथा भाभी बोली हमारी ननद आई है, भतीजे कहने लगे कि हमारी बुआ आई है, मां हर रोज अपने बच्चों को घंटी बजा कर दूध पिलाती है, वह रोज देखती रहती थी। एक दिन वह अपनी मां से छोटे भाई- बहन को दूध पिलाने की जिद करने लगी। तो मां बोली ले गर्म दूध में घंटी मत बजाना लेकिन उसने गरम-गरम में घंटी बजा दी। जिसके पीने से किसी की जीभ, किसी की पूंछ, किसी का फन जल गया। सब गुस्से से बोले इसने हमें जलाया है हम इसे खाएंगे। इस बात को सुनकर मां बोली इससे गलती हो गई। मैं इसकी तरफ से माफी मांगती हूं और इसको छोड़ दो। उसकी भाभी के लड़का हुआ था, भाभी बोली मांगो, तुम्हें क्या चाहिए। ननद ने नौलखा हार मांगा। भाभी ने ननद को नौलखा हार दे दिया और कहा कि अगर तू पहनेगी तो हार रहेगा, अगर कोई दूसरा पहने का तो सर्प बन जाएगा। राजा का लड़का उसे लेने आया और उसने भगवान से प्रार्थना करी कि हे भगवान! बाबी की जगह महल बना दो। जब उसे रहते हुए ढाई दिन हो गए, तो राजा का लड़का अपनी पत्नी को ले जाने के लिए आया। उन्होंने उसे विदा करते हुए दास-दासी, हाथी, घोड़े, धन- दौलत देकर विदा किया। लेकिन जाते समय राजा का लड़का अपनी धोती भूल गया और रास्ते में याद आया। लड़के ने पत्नी से कहा कि मैं अपनी धोती वापस ले कर आता हूं, पत्नी बोली विदाई में इतना धन दिया है। अपनी पुरानी धोती लेने जाओगे तो भाभियाँ क्या कहेंगी। लड़के ने कहा कि नई मिल जाए तो पुरानी को छोड़ दो? मैं तो अपनी पुरानी धोती जरूर लाऊंगा। राजा के लड़के ने देखा वहां पर ना कोई महल था। उसने अपनी धोती कीकर के पेड़ पर टंगी हुई मिली। लड़का ये देखकर पत्नी पर तलवार लेकर खड़ा हो गया कि सच सच बताओ नहीं तो तुझे मारूंगा। पत्नी ने राजा के लड़के से कहा कि देवरानी-जेठानी, पड़ोसन बोली मार रही थी। यह सब बातें सर्प देवता सुन रहा था और वही मेरा धर्म भाई बना। आपके आने का पता चला तो मैंने भगवान से ढाई दिन का पीहर मांगा था। घर आने के कुछ दिन बाद बहू के लड़का हुआ। तो उसकी ननद ने वही नौलखा हार मांग लिया। जो तुम अपने पीहर से लाई हो उसने कहा और कुछ मांग लो- पर वह नहीं मानी उसने कहा कि ढाई दिन के मांगे का हार है उसने कहा कि अगर मैं पहनूंगी तो हार रहेगा, तुम पहनो गी तो सर्प बन जाएगा। वह नहीं मानी उसने उस हार को ननंद को दिया और उसने पहना तो वह सर्प बन गया।

ननद से बहू ने कहा कि मेरे ढाई दिन का पीहर का हार है, ननंद को पूरी कहानी बताइ कि किस तरह मुझे यह हार मिला। ननद बोली यह भाभी सच है क्या। भैया पंचमी में इतना सत्य है तो विश्वास नहीं होता। तब बहू के ससुर ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि लगते श्रवण की पंचमी को सब कोई भाई पंचम बनाएं। चने, मूंग, भिगोए, कीकर के झाड़ में पिरोए और चने, मूंग की धोक मारे और बायना निकालें।

नाग पंचमी से जुड़ीं मान्यताएँ

पुराणों के अनुसार,सर्प के दो प्रकार बताए गए हैं: दिव्य और भौम। वासुकि और तक्षक को दिव्य सर्प माना गया हैं जिन्हे पृथ्वी का बोझ उठाने वाला तथा अग्नि के समान तेजस्वी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि ये अगर कुपित हो जाए तो अपनी फुफकार मात्र से सम्पूर्ण सृष्टि को हिला सकते हैं। 

पुराणों के अनुसार, सृष्टि रचियता ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियाँ थी। मान्यता है कि उनकी पहली पत्नी से देवता, दूसरी पत्नी से गरुड़ और चौथी पत्नी के गर्भ से दैत्य उत्पन्न हुए, लेकिन उनकी तीसरी पत्नी कद्रू का सम्बन्ध नाग वंश से था, इसलिए उनके गर्भ से नाग उत्पन्न हुए। सभी नागों में आठ नाग को श्रेष्ठ माना गया है और इन अष्ट नागों में से दो नाग ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, दो वैश्य और दो शूद्र हैं। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे जन्मजेय। उन्होंने सर्पों से प्रतिशोध व नाग जाति का विनाश करने के लिए नाग यज्ञ सम्पन्न किया था क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हुई थी। इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने नाग वंश की रक्षा हेतु रोका था। इस यज्ञ को जिस तिथि पर रोका गया था उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी। ऐसा करने से तक्षक नाग और समस्त नाग वंश विनाश से बच गया था। उसी दिन से ही इस तिथि को नाग पंचमी के रूप में मनाने की प्रथा प्रचलित हुई।