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लक्ष्मी स्तोत्र: इसे पढ़िये और स्वयं जानिए इसकी शक्ति और प्रभाव को, कट जाएगी दरिद्रता

Lakshmi Stotra: दुख और दरिद्रता आने पर ये स्तोत्र सुख समृद्धि के दरवाजे खोलने वाला है, इसके पाठ करने से महालक्ष्मी(Mahalakshmi Stotra) की कृपा आप पर सदा बनी रहेगी और घर मे लक्ष्मी नारायण(Lakshmi Narayana) का वास रहेगा, आइए पढ़ते है माँ महालक्ष्मी(Lakshmi Stotra) का दिव्य स्तोत्र...
 
Lakshmi
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श्री लक्ष्मी स्तोत्र

श्री लक्ष्मी को मैं नमस्कार करता हूं। जो जगत के लोगों की जननी है। भगवान विष्णु के वक्षस्थल में विराजमान है। कमल ही जिनके कर कमलों में सुशोभित है तथा कमल दल के समान नेत्र हैं। उनका कमलमुखी कमलनाथ प्रिया श्री कमला देवी की मैं वंदना करता हूं।

हे देवी! तुम सिद्धि हो, स्वधा हो, सुधा हो, त्रिलोकी को पवित्र करने वाली हो और तुम ही संध्या, रात्रि, प्रभा, विभूति, मेधा, श्रद्धा और सरस्वती हो। हे शोभने, यज्ञ, विद्या, कर्मकांड, महाविद्या, और गुहा विद्या तुम ही हो।

हे देवी! तुम ही मुक्तिफल दायिनी आत्मविद्या हो। हे देवी, तर्क विद्या, वेदत्रयी, वार्ता और दंड नीति, राजनीति भी तुम ही हो। तुम ही ने अपने शांत और उग्र रूपों से यह समस्त संसार व्याप्त कर रखा है।

Mahalakshmi

हे देवी! तुम्हारे बिना ऐसा कौन सी स्त्री है जो देवों के देव भगवान गदाधर के योगीजन चिंतित सर्वज्ञमय शरीर का आश्चर्य पा सके। हे देवी! तुम्हारे छोड़ देने पर संपूर्ण त्रिलोकी नष्ट हो गई थी, तूने जीवनदान दिया है जो सभी जीवो में कांति रुप से लक्ष्मी रूप तथा वृत्ति से विद्यमान है। उन देवी को पुनः पुनः प्रणाम करता हूं।

सभी जीवो में समृति रूप से वर्तमान देवी को बार-बार प्रणाम है। जिन देवी की सभी जीवो में दया और दृष्टि रूप में स्थिति है, उन देवी को मेरा प्रणाम है। जो देवी सभी प्राणियों में मातृ तथा भ्रांति रूप से विद्यमान है उन्हें मेरा बारंबार नमस्कार है।

जो देवी समस्त जीवो में इंद्रिय वर्ग की स्वामिनी और सभी प्राणियों में व्याप्त रहने वाली है, उन्हें मेरा नमस्कार है। जिन देवी की इस सृष्टि में चेतन रूप से व्याप्ति है उन देवी को मेरा प्रणाम है।

हे देवी! जिस पर तुम्हारी कृपा है वही प्रशंसनीय है। वही शूरवीर और पराक्रमी है। हे विष्णु प्रिय, हे जगजननी, तुम जिस से विमुख हो उसके तो शील आदि सभी गुण तुरंत अवगुण रूप हो जाते हैं।

हे देवी! तुम्हारे गुणों का वर्णन करने में तो श्री ब्रह्मा जी की रसना भी समर्थ नहीं, फिर मैं क्या कर सकता हूं। अतः हे कमलनयने अब मुझ पर प्रसन्न हो और मुझे कभी नहीं छोड़ो।