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Shahidi Saptah: 10 लाख की फौज भी नहीं पकड़ पाई, सवा लाख से एक लड़ाया, इन 7 दिनों मे गुरु गोबिन्द सिंह जी ने वार दिया था सरबंस

Shahidi Saptah: श्रद्धावान सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, 20 दिसंबर से लेकर 27 दिसंबर तक, शहीदी सप्ताह मनाते हैं और गुरुजनों की कुर्बानियाँ याद रखते हैं। इन दिनों विश्वभर के गुरुद्वारों से लेकर घरों तक में गुरबानी कीर्तन किया जाता है। बच्चों को गुरु गोबिन्द सिंह साहिब के परिवार की शहादत के बारे में शिक्षित किया जाता है। कई श्रद्धावान सिख इस पूरे हफ्ते जमीन पर सोते हैं और गुरु गोबिन्द सिंह जी की माता और गुरु तेग बहादुर जी की पत्नी माँ गुजरी व साहिबजादों की शहादत को नमन करते हैं।
 
Guru Gobind Singh Ji
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Haryana Update, Shahidi Saptah: दशमेश पिता सरबंसदानी, अमृत के दाता गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की शहादत को आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है। गऊ-गरीब जन, धर्म की रक्षा के लिए दी गई इस शहादत जैसा दूसरा उदाहरण शायद ही इतिहास के पन्नों मे सुनने या पढ़ने को मिले। आइए जानते हैं इस शहीदी सप्ताह का पूरा इतिहास:

20 दिसंबर : मुगलों और पहाड़ी राजाओं ने अचानक आनंदपुर साहिब के किले पर हमला किया। मुगलों-पहाड़ी राजाओं ने गऊ गरीब की कसमें तोड़ दी। गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों से लड़ना चाहते थे, लेकिन अन्य सिखों ने उन्हें वहां से चलने के लिए प्रार्थना करी। गुरु साहिब जानते थे कि उन्होने गऊ कुरान की झूठी कसमें खाई है। और इनपर विश्वास नहीं किया जा सकता। लेकिन सिखों की प्रार्थना स्वीकार करते हुए इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह के परिवार सहित अन्य सिखों ने आनंदपुर साहिब के किले को छोड़ दिया और वहां से निकल पड़े। लेकिन गुरु जी कुछ दूरी पर ही गए थे कि मुगलों-पहाड़ी राजाओं ने कुरान और गऊ की कसमें तोड़ दी और पीछे से हमला कर दिया। गुरु जी ने सिखों के जत्थे बनाकर पीछे युद्ध के लिए भेज दिया और ऐसी जगह पर जाने लगे जहां शत्रु से सही मुक़ाबला किया जा सके।

guru gobind singh

21 दिसंबर : अमृतवेला (Early Morning) हुआ तो सरसा नदी के किनारे कीर्तन दरबार लगाया। कीर्तन उपरांत अरदास करने दौरान सरसा नदी का वेग तेज हो गया। जब सभी लोग सरसा नदी को पार कर रहे थे तो पानी का बहाव इतना तेज हो गया कि पूरा परिवार बिछड़ गया। आज वहाँ गुरुद्वारा 'परिवार विछोड़ा साहिब' बना है। बिछड़ने के बाद गुरु गोबिंद सिंह व दो बड़े साहिबजादे बाबा अजित सिंह व बाबा जुझार सिंह चमकौर पहुंच गए। वहीं, माता गुजरी, दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह और गुरु साहिब के सेवक रहे गंगू गुरु साहिब व अन्य सिखों से अलग हो गए। इसके बाद गंगू इन सभी को अपने घर ले गया लेकिन उसने सरहंद के नवाज वजीर खान को जानकारी दे दी जिसके बाद वजीर खान माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को कैद कर लिया।

guru gobind singh

22 दिसंबर : इस दिन चमकौर की लड़ाई हुई जिसमें सिख और मुगलों की सेना आमने-सामने थी। मुगल-पहाड़ी राजा करीब 10 लाख की बड़ी संख्या में थे लेकिन सिख कुछ (43) ही थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों में हौंसला भरा और युद्ध में डटकर सामना करने को कहा। इसके बाद सिखों ने मुगलों से लोहा लिया और उन्हें नाको चने चबवा दिये। यहाँ गुरु जी ने 'सवा लाख से एक लड़ाऊ' का वचन सिद्ध किया।

battle of chamkaur

23 दिसंबर : यह युद्ध अगले दिन भी चलता रहा। युद्ध में सिखों को शहीद होता देखा दोनों बड़े साहिबजादों बाबा अजित सिंह व बाबा जुझार सिंह ने एक-एक कर युद्ध में जाने की अनुमति गुरु साहिब से मांगी। गुरु साहिब ने उन्हे आशीर्वाद देकर उन्हें अनुमति दी और उन्होंने एक के बाद एक मुगलों को मौत के घाट उतारना शुरू किया। इसके बाद वह दोनों भी शहीद हो गए। कहा जाता है कि गुरु गोबिन्द सिंह जी के बड़े पुत्र के शरीर पर 300 से ज्यादा घाव थे। लेकिन अजीत सिंह वाकई अजीत थे।

chamkaur battle

24 दिसंबर : गुरु गोबिंद सिंह जी भी इस युद्ध में उतरना चाहते थे लेकिन अन्य सिखों ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए गुरु साहिब जो युद्ध में उतरने से रोक दिया और उन्हें वहां से जाने को कहा। लेकिन वीरों के वीर गुरु साहिब ने भी वीरों की भांति किला छोड़ा। जाते जाते 3 बार ताड़ी मारकर बोले- हिंद द पीर जा रेहा है कोई रोक सकता है तो रोक ले'। खौंफ के मारे मुगल सेना मे अफरा तफरी मच गई। इसके बाद वह सिख मैदान में लड़ते हुए शहीद हो गए।

battle of chamkaur

25 दिसंबर : यहां से निकलने के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी एक गांव में पहुंचे जहां उन्हें बीबी हरशरन कौर मिलीं जो गुरु साहिब को आदर्श मानती थीं। उन्हें जब युद्ध में शहीद हुए सिखों व साहिबजादों की जानकारी मिली तो वह चुपके से चमकौर पहुंचीं और शहीदों का अंतिम संस्कार करना शुरू किया जबकि मुगल यह नहीं चाहते थे। वह चाहते थे कि चील-गिद्द इन्हें खाएं। जैसे ही मुगल सैनिकों ने बीबी हरशरन कौर को देखा, उन्हें भी आग के हवाले कर दिया और वह भी शहीद हो गईं।

mata gujri ji thand burj

26 दिसंबर : सरहंद के नवाज वजीर खान ने माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह को ठंडा बुर्ज में खुले आसमान के नीचे कैद कर दिया। वजीर खान ने दोनों छोटे साहिबजादों को अपनी कचहरी में बुलाया और डरा-धमकाकर उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन दोनों साहिबजादों ने ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ के जयकारे लगाते हुए धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया। वजीर खान ने फिर धमकी देते हुए कहा कि कल तक या तो धर्म परिवर्तन करो या मरने के लिए तैयार रहो।

sirhind

27 दिसंबर : ठंडे बुर्ज में कैद माता गुजरी ने दोनों साहिबजादों को बेहद प्यार से तैयार करके दोबारा से वजीर खान की कचहरी में भेजा। यहां फिर वजीर खान ने उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन छोटे साहिबजादों ने मना कर दिया और फिर से जयकारे लगाने लगे। यह सुन वजीर खान तिलमिला उठा और दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने का हुक्म दे दिया और साहिबजादों को शहीद कर दिया। यह खबर जैसे ही माता दादी माता गुजरी के पास पहुंची, उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए।