जब बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता, पांच प्वाइंट में समझे पूरी बात
Haryana Update: संपत्ति पर विवाद अक्सर होता है। इन संपत्ति विवादों में, बेटियों का पति की संपत्ति में हिस्सा लेना सबसे आम है। इस लेख में हम आपको पिता की संपत्ति में बेटियों का हिस्सा कब नहीं मिलता बताने जा रहे हैं। नीचे खबर में विस्तार से पढ़ें..।
भारत में स्पष्ट कानून हैं कि बेटियों को पिता की संपत्ति में कितना हिस्सा मिलेगा और कब उनका हिस्सा नहीं मिलेगा।कहीं भी कोई भ्रमपूर्ण स्थिति नहीं है; आज सब कुछ स्पष्ट है।
हमारे देश में संपत्ति को विभाजित करने के लिए विभिन्न कानून हैं। यह कानून सभी धर्मों में लागू होता है।इन कानूनों में से कुछ पार्लियामेंट ने भी बनाए हैं, जैसे 1956 के भारत के हिंदुओं के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम। मुसलमानों का अपना पर्सनल लॉ है, ईसाइयों का भी है।
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भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925, इनमें से एक है, जो सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होता है। यह कानून किसी भी धर्मनिरपेक्ष भारतीय पर लागू होता है। अनेक मामलों में न्यायालय इस अधिनियम की सहायता लेता है।
इन सभी कानूनों से किसी भी व्यक्ति को संपत्ति में अधिकार मिलते हैं, लेकिन यह ध्यान देना चाहिए कि न्यायालय किसी भी ऐसे कानून को नहीं मानेगा जो संविधान में दिए गए मूल अधिकारों से विपरीत जाता है क्योंकि न्यायालय का मानना है कि किसी भी ऐसे कानून को नहीं माना जाएगा जो मूल अधिकारों से विपरीत जाता है।
भारत में संपत्ति दो प्रकार की होती है। एक संपत्ति है जो किसी व्यक्ति ने स्वयं अर्जित की है, जबकि दूसरी संपत्ति पैतृक संपत्ति है।
पैतृक संपत्ति पीढ़ी दर पीढ़ी चली आती है। शहरी अमीर लोगों के पास अक्सर ऐसी पैतृक संपत्ति होती है जो वर्षों से एक ही जगह पर रहते हैं। यद्यपि आज ऐसी संपत्ति बहुत दुर्लभ है, फिर भी इसे मानना चाहिए।
स्वयं की संपत्ति एक आम बात है। स्वयं द्वारा संपत्ति सब कुछ है जो किसी व्यक्ति ने खुद बनाया है। स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति को स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति कहा जाता है, चाहे वह दान में मिली हो, किसी को उसकी संपत्ति छोड़ दी हो या पुरस्कार में मिली हो।
इन दो संपत्ति के बीच ही कहानी चलती है। पैतृक संपत्ति और अपनी खुद की संपत्ति जब कोई व्यक्ति स्वयं से संपत्ति खरीदता है, तो उसे अपनी संपत्ति के संबंध में कोई भी निर्णय लेने का पूरा अधिकार है।
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, या संपत्ति अंतरण अधिनियम, इसका उल्लेख करता है। किसी को अपनी संपत्ति के बारे में निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता है। अब, भले ही उसके बच्चे ही क्यों न हो, कोई भी व्यक्ति उसे ऐसा फैसला लेने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।
समाज में भी कुछ ऐसे भ्रम देखने को मिलते हैं कि बच्चों को लगता है कि वह अपने पिता को अपनी संपत्ति बेचने से रोक सकते हैं, जबकि यह बिल्कुल गलत है। एक पिता अपनी संपत्ति को किसी भी स्थान पर बेच सकता है।बच्चों को कुछ संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता।
जब कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को बेच देता है, बेच देता है, कोई हक त्याग देता है या कोई अन्य उपाय करता है, तो उनके बेटे या बेटियों को उनके पिता की संपत्ति पर कोई दावा नहीं करना चाहिए।
कोई व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपनी संपत्ति की वसीयत करने में पूरी तरह से स्वतंत्र है। वह जहां चाहे वसीयत बना सकता है, लेकिन बच्चे इसे कोर्ट में चैलेंज कर सकते हैं और इसे अवैध बता सकते हैं. लेकिन अगर जांच में यह पाया गया कि वसीयत वैध है, तो बच्चे मुकदमा हार जाते हैं।
कब बेटियों को पिता की संपत्ति पर अधिकार मिलता है?
पिता की स्वयं की संपत्ति पर उनकी पत्नी और बेटों को उसके मरने के बाद ही अधिकार मिलता है। यदि कोई व्यक्ति निर्णय लेने के बिना मर जाता है, तो उसके बेटे और बेटियों को कोई अधिकार नहीं होता. लेकिन अगर कोई निर्णय लेने के बिना मर जाता है, तो उनका अधिकार होता है।
हिंदुओं के मामलों में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और मुसलमानों के मामलों में मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू होते हैं। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार, बेटे और बेटी दोनों को बराबर का अधिकार है। बेटे को किसी भी संपत्ति पर उतना ही अधिकार मिलता है जितना बेटी को मिलता है।
बेटा नहीं कह सकता कि बेटी की शादी हो गई है और उसे पति की संपत्ति पर अधिकार मिल गया है। अगर पिता की संपत्ति को नियंत्रित नहीं किया और वह मर जाता है, तो बेटी अपने पिता की संपत्ति पर दावा कर सकती है।
न्यायालय ने फैसला किया कि संपत्ति एक व्यक्ति ने स्वयं खरीदी थी, तो बेटी को बराबर का हिस्सा इस संपत्ति में दिया जाता है, जिससे संपत्ति को उत्तराधिकार में दिया जाता है।फिर वह संपत्ति की मालिक बन जाती है और अपनी संपत्ति के बारे में अपने मन की बात करती है।
मुसलमानों के मामले में स्थिति कुछ अलग है; पहले बेटी को बेटे से कुछ कम अधिकार था, लेकिन आज न्यायालय इस विचार को नहीं मान रहा है और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम मुस्लिम पर्सनल लॉ के मामले में भी बेटी को बराबरी का अधिकार देता है। भले ही पिता मुसलमान हो, बेटी को पिता की संपत्ति में बराबरी का अधिकार है