भू अधिग्रहण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने किया बड़ा ऐलान
भूमि अधिग्रहण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा ऐलान किया है भूमि अधिकरण के मामले में विवाद होना तो आम सी बात है और भूमि अधिग्रहण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इस पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जिससे लोगों को राहत मिली है जानिए विस्तार से

Haryana Update : निजी स्वामित्व वाली Land का Acquisition किए जाने पर उसकी एवज में भू मालिकों को मुआवजा दिया जाता है। आमतौर पर इन्हीं मुआवजों को लेकर विवाद सामने आते रहते हैं। कई बार यह भी देखने में आता है कि सरकार की ओर से भू Acquisition तो कर लिया जाता है लेकिन मुआवजा राशि को लटका दिया जाता है। इससे भू मालिकों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। अब Supreme Court ने भू Acquisition के मामले में ऐतिहासिक फैसला देकर लोगों को बड़ी राहत देने का काम किया है।
हाईCourt के फैसले को Supreme Court में दी थी चुनौती
सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला बेंगलुरु-मैसुरु इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट के लिए भू-Acquisition से जुड़े मामले में सुनाया है। यह मामला पहले कर्नाटक हाईCourt में था। बाद में कर्नाटक High Court की ओर से नवंबर, 2022 में दिए गए फैसले को Supreme Court में चुनौती दी गई थी।
Supreme Court के अनुसार अनुच्छेद-300-ए कहता है कि कानूनी अधिकार के बिना किसी को उसकी Property से बेदखल करना सही नहीं है, इस प्रावधान के अनुसार ऐसा कतई नहीं किया जा सकता। Supreme Court ने कहा है कि किसी Jamin का Acquisition करने पर भू मालिकों को तक तक उस Jamin से बेदखल नहीं किया जा सकता, जब तक कि उन्हें उचित मुआवजा न दे दिया जाए।
Supreme Court ने की ये टिप्पणी
Supreme Court ने इस मामले में टिप्पणी की है कि Property का अधिकार संवैधानिक अधिकारों में शामिल है। इस पुष्ट करते हुए दो न्यायाधीशों की पीठ ने कहा संविधान (44वां संशोधन) अधिनियम, 1978 के कारण अब Property का अधिकार वैसे तो मौलिक अधिकार में नहीं, लेकिन यह मानव अधिकार और संविधान के अनुच्छेद-300-ए के तहत देखा जाए तो हर हाल में संवैधानिक अधिकार ही है।
अधिकारियों ने की मुआवजे में देरी
इस मामले में सु्प्रीम Court ने यह भी कहा कि नवंबर, 2005 में अपीलकर्ताओं की Jamin उनकी नहीं रही थी। इस पर परियोजना के लिए Jamin अधिग्रहीत की जा चुकी थी और इससे पहले कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड यानी (KIADB) ने जनवरी, 2003 में एक अधिसूचना जारी की थी। इसके बाद भू-स्वामी 22 साल से Court के चक्कर काटते रहे हैं।
अपीलकर्ताओं को एक तो मुआवजा नहीं दिया गया और दूसरे उनको उन्हीं की Property से बेदखल भी कर दिया गया। इसका यही मतलब है कि KIADB अधिकारियों का रवैया सही नहीं रहा और इसी कारण इतने साल तक भू मालिकों को उनके अधिकारों के अनुसार मुआवजा नहीं मिला।
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नोटिस के बाद लिया गया संज्ञान
इस पर न्यायधीशों की पीठ ने कहा कि यह अवमानना करने पर कार्यवाही की गई और नोटिस जारी होने के बाद 22 अप्रैल, 2019 को विशेष भू-Acquisition अधिकारी यानी SLAO ने अधिग्रहीत Land का बाजार मूल्य निर्धारित करने के लिए जागे। उन्होंने 2011 में प्रचलित मूल्यों को आधार बनाया। इसके बाद ही मुआवजा राशि तय की गई।
इस रेट पर नहीं दिया जा सकता मुआवजा-
Supreme Court ने कहा है कि साल 2003 के हिसाब से बाजार मूल्य पर अपीलकर्ताओं को मुआवजा देना उचित नहीं है। यह संविधान के अनुच्छेद-300-ए के प्रावधान का उल्लंघन और मजाक भी है। इस मामले में अनुच्छेद-142 के तहत अदालत ने एसएलएओ को 22 अप्रैल, 2019 को प्रचलित बाजार रेट के आधार पर मुआवजा देने के निर्देश दिए।
Supreme Court ने दिए ये निर्देश-
इस मामले में Supreme Court ने पक्षकारों की सुनवाई करने के बाद एसएलएओ को दो महीने में ही नए सिरे से मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं। अगर पक्षकार इससे संतुष्ट नहीं होंगे तो चुनौती देने का अधिकार उनके पास रहेगा।