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Home Loan EMI: कितनी किस्तें नहीं भरने पर बैंक कर देगा डिफॉल्टर घोषित, जानें नियम

होम लोन लेने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण जानकारी है। अगर आप लगातार अपनी EMI नहीं भरते हैं, तो बैंक आपको डिफॉल्टर घोषित कर सकता है। आमतौर पर 3-6 महीने तक EMI न भरने पर बैंक डिफॉल्टर की श्रेणी में डाल सकता है और आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है। जानें इसके नियम और इसे कैसे बचा जा सकता है, ताकि आपकी क्रेडिट रेटिंग पर असर न पड़े।
 
Home Loan EMI: कितनी किस्तें नहीं भरने पर बैंक कर देगा डिफॉल्टर घोषित, जानें नियम
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Haryana update : आजकल लगभग हर किसी को किसी न किसी तरह के लोन की आवश्यकता होती है, चाहे वह होम लोन (Home Loan), पर्सनल लोन (Personal Loan), या कोई अन्य लोन हो। और यह सच्चाई है कि अगर आपने बैंक से कर्ज लिया है, तो उसकी EMI (Equated Monthly Installment) का भुगतान समय पर करना पड़ता है। समय पर किस्त न भरने पर आपको ब्याज (Interest) का भुगतान करना पड़ता है, जिससे आपकी वित्तीय स्थिति और मुश्किल हो सकती है।

अगर आपका CIBIL स्कोर अच्छा है और आप नियमित रूप से किस्तें भरते हैं, तो आपको ब्याज में राहत मिल सकती है। लेकिन अगर अचानक आर्थिक तंगी या अन्य कारणों से EMI बाउंस हो जाती है, तो आप गंभीर समस्या में फंस सकते हैं, खासकर यदि आपने लंबी अवधि का होम लोन लिया है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि बैंक किस स्थिति में आपको डिफॉल्टर (Loan Defaulter) घोषित कर सकता है और इसके बाद बैंक की कार्रवाई क्या होती है।

बैंक कर्जदार को कब डिफॉल्टर घोषित करता है?

होम लोन के संदर्भ में, बैंक कर्जदार की पहली EMI बाउंस को हल्के में लेता है, क्योंकि यह अक्सर चूक (error) माना जाता है। लेकिन जब कर्जदार की लगातार दो EMI बाउंस हो जाती हैं, तो बैंक उस पर ध्यान देता है और कर्जदार को नोटिस भेजता है। अगर कर्जदार तीसरी EMI भी मिस करता है, तो बैंक कानूनी नोटिस भेजता है।

यदि इसके बाद भी कर्जदार EMI का भुगतान नहीं करता है, तो बैंक कर्जदार को डिफॉल्टर की श्रेणी में डाल सकता है। इसके बाद, बैंक प्रॉपर्टी की नीलामी (Property Auction) की प्रक्रिया शुरू करता है।

नीलामी से पहले मिलते हैं लोन चुकाने के मौके

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के नियमों के मुताबिक, अगर कर्जदार 90 दिनों तक लोन की किस्त नहीं चुकता, तो उसे NPA (Non-Performing Asset) माना जाता है। इस स्थिति में, बैंक के पास कर्ज वसूलने के लिए आखिरी विकल्प नीलामी (Auction) होता है। हालांकि, इसे तुरंत लागू नहीं किया जाता और NPA घोषित होने के बाद भी कर्जदार को कुछ समय दिया जाता है।

NPA की भी तीन श्रेणियां होती हैं:

  1. सबस्टैंडर्ड असेट्स (Substandard Assets): जब कर्जदार एक साल तक लोन का भुगतान नहीं करता।

  2. डाउटफुल असेट्स (Doubtful Assets): एक साल से अधिक समय तक लोन का भुगतान न करने पर।

  3. लॉस असेट्स (Loss Assets): जब लोन की वापसी की कोई संभावना नहीं रहती, तो इसे लॉस असेट्स के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और फिर बैंक नीलामी की प्रक्रिया शुरू करता है।

नीलामी से पहले बैंक जारी करता है नोटिस

जब कर्जदार से लोन वसूली की कोई उम्मीद नहीं रहती, तो बैंक नीलामी का रास्ता अपनाता है। लेकिन नीलामी प्रक्रिया शुरू करने से पहले, बैंक पब्लिक नोटिस जारी करता है। इस नोटिस में संपत्ति की सही कीमत, रिजर्व रेट, नीलामी की तारीख और सम्बंधित जानकारी दी जाती है।

अगर कर्जदार को लगता है कि उसकी संपत्ति की कीमत कम रखी गई है, तो वह नीलामी को चुनौती दे सकता है और उचित मूल्य की मांग कर सकता है। हालांकि, अगर कर्जदार इस दौरान लोन का भुगतान करता है, तो नीलामी प्रक्रिया रुक सकती है।

इसलिए, यदि आपने भी होम लोन या पर्सनल लोन लिया है, तो यह महत्वपूर्ण है कि आप समय पर EMI का भुगतान करें। EMI बाउंस होने से पहले यदि आप किसी कारणवश चूक करते हैं, तो उसे जल्द से जल्द ठीक करें, ताकि बैंक द्वारा आपको डिफॉल्टर घोषित करने से पहले आप अपने लोन को चुकता कर सकें और नीलामी से बच सकें।