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बिहार आरक्षण कानून क्यों हुआ हाईकोर्ट मे रद्द, नितीश कुमार को बड़ा झटका

बिहार आरक्षण कानून: इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की संविधान पीठ द्वारा 1992 में फैसला दिया गया था कि किसी भी सूरत में आरक्षण 50 प्रतिशत के पार नहीं जा सकता है।
 
patna high court on bihar reservation law

बिहार में अनुसूचित जाति/ दलित (एससी), अनुसूचित जनजाति/ आदिवासी (एसटी), अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का नौकरी और एडमिशन में आरक्षण बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने वाले बिहार आरक्षण कानून को पटना हाईकोर्ट ने रद्द करके सीएम नीतीश कुमार को तगड़ा झटका दे दिया है। संविधान के तीन अनुच्छेदों का उल्लंघन बताकर चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस हरीश कुमार की बेंच ने Bihar Reservation of Vacancies in Posts and Services (Amendment) Act, 2023 और The Bihar (In admission in Educational Institutions) Reservation (Amendment) Act, 2023 को निरस्त किया है। नीतीश जब आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन सरकार चला रहे थे तब जाति आधारित सर्वे रिपोर्ट के आधार पर नवंबर 2023 में आरक्षण सीमा 50 परसेंट से बढ़ाकर 65 परसेंट करने का कानून लागू हुआ था।

इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की संविधान पीठ द्वारा 1992 में फैसला दिया गया था कि किसी भी सूरत में आरक्षण 50 प्रतिशत के पार नहीं जा सकता है। हालांकि केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए इस 50 परसेंट से ऊपर 10 प्रतिशत आरक्षण कर दिया। 2022 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने 3-2 के फैसले से ईडब्ल्यूएस आरक्षण को सही ठहराया था और दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का 10 फीसदी कोटा मिलाकर बिहार में आरक्षण 75 प्रतिशत तक पहुंच गया था।

बिहार आरक्षण कानून को इंदिरा साहनी जजमेंट के आधार पर ही पटना हाईकोर्ट में कई संगठन और लोगों ने चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद 11 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसे गुरुवार (20 जून) को सुनाया गया है। हाईकोर्ट ने फैसले में इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन करने वाला कानून बताया है। आइए समझते हैं कि मौलिक अधिकार वाले ये अनुच्छेद क्या कहते हैं।

संविधान का अनुच्छेद 14- यह आर्टिकल समानता के अधिकार की गारंटी करता है। ये कहता है कि राज्य किसी व्यक्ति को कानून के सामने समता या भारत में कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। किसी भी तरह का आरक्षण समानता के अधिकार का उल्लंघन है। लेकिन आर्टिकल 15 और 16 में आरक्षण जैसे उपायों का रास्ता खोला गया है।

संविधान का अनुच्छेद 15- इस आर्टिकल से यह मौलिक अधिकार निकलता है कि धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर राज्य किसी से भेदभाव नहीं करेगा। इसी अनुच्छेद की अलग-अलग धाराओं के जरिए सरकार को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए स्पेशल प्रबंध करने की ताकत मिलती है। पहले दलित और आदिवासी, बाद में ओबीसी और हाल में आर्थिक कमजोर वर्ग (सवर्ण) के लिए शिक्षण संस्थानों के दाखिले में आरक्षण का आधार यही है।

संविधान का अनुच्छेद 16- यह आर्टिकल बताता है कि सरकारी नौकरी और नियुक्ति में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी। कोई नागरिक धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, उद्भव, जन्म स्थान, निवास के आधार पर सरकारी नौकरी या नियुक्ति के ना तो अपात्र होगा और ना उससे भेदभाव किया जाएगा। इसी अनुच्छेद में अलग-अलग धाराओं के जरिए एससी, एसटी, ओबीसी और अनारक्षित (सवर्ण) के लिए सरकारी नौकरी में आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

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