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इन राज्यों को मिलेगा स्पेशल स्टेट का दर्जा! मिलेगा इतना फायदा

ईवाई इंडिया EY India के चीफ पॉलिसी एडवाइजर डी. के. श्रीवास्तव का कहना है कि विशेष श्रेणी का दर्जा एक कंसेप्ट था। वह तब तक प्रासंगिक था, जब तक योजना आयोग अस्तित्व में था।
 
bihar andhra pradesh special state status

नई दिल्ली: इस बार आम चुनाव (Loksabha Election 2024) में खंडित जनादेश मिला है। इस समय ऐसी परिस्थिति बनी है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी केंद्र में सरकार गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। जाहिर है कि बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए विशेष श्रेणी के दर्जे (Special category status) की उनकी पिछली मांगें फिर से फोकस में आ गई हैं। इस चुनाव में टीडीपी (TDP) ने 16 सीटें और जेडी (यू) ने 12 सीटें जीतीं हैं। वे दोनों भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा हैं।

फिलहाल विशेष राज्य का कंसेप्ट कारगर नहीं

ईवाई इंडिया EY India के चीफ पॉलिसी एडवाइजर डी. के. श्रीवास्तव का कहना है कि विशेष श्रेणी का दर्जा एक कंसेप्ट था। वह तब तक प्रासंगिक था, जब तक योजना आयोग अस्तित्व में था। क्योंकि यह आमतौर पर योजना सहायता पर लागू होता था। चूंकि अब योजना सहायता की अवधारणा अब मौजूद नहीं है, इसलिए बिना इसके लिए प्रावधान किए कोई फायदा नहीं हो सकता है। हां, यदि सरकार चाहे तो नीति आयोग जैसी सरकारी बॉडी विशेष श्रेणी वाले राज्यों की सहायता के लिए कुछ विशेष प्रावधान करें। क्योंकि विशेष राज्या का दर्जा चाहने वाले राज्य तो इसके जरिए विशेष सहायता पैकेज की ही मांग कर रहे हैं।

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बिहार ने कब की थी मांग

बिहार द्वारा विशेष श्रेणी के दर्जे की मांग नई नहीं है। सबसे पहले नीतीश कुमार ने इसे तब उठाया था, जब वह 2005 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उनका कहना था कि झारखंड के अलग हो जाने के बाद से बिहार एक पिछड़ा और गरीब राज्य रह गया है। उन्होंने यह मांग पिछले साल नवंबर में भी तब दोहराई थी जब उन्होंने जाति जनगणना के आंकड़े जारी किए थे।

नायडू की भी मांग पुरानी है
चंद्र बाबू नायडू भी विशेष श्रेणी के दर्जे के लिए बहुत पहले से अभियान चला रहे हैं। जब साल 2014 में आंध्र प्रदेश का विभाजन हुआ और तेलंगाना एक अलग राज्य बन गया तो उसके राजस्व के एक बड़े हिस्से के नुकसान हुआ। इसके बाद नायडू ने साल 2017 में राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग उठाई थी। वह अमरावती को आंध्र प्रदेश की राजधानी के रूप में पुनः स्थापित करने की अपनी स्थगित योजना को पुनर्जीवित करने की भी उम्मीद कर रहे हैं, जिसके लिए धन की आवश्यकता होगी।

ओडिशा की तरफ से भी उठ चुकी है मांग

लोकसभा चुनाव के साथ ही ओडिशा में विधानसभा के लिए भी मतदान हुआ है। इसमें हालांकि नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल को सफलता नहीं मिली। लेकिन ओडिशा के मुख्यमंत्री रहते हुए नवीन पटनायक ने राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा देने की मांग की थी। लेकिन उनकी मांग को केंद्र सरकार ने तवज्जो नहीं दिया था। अब जबकि राज्य में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिला है, तो माना जाता है कि उस राज्य को भी विशेष श्रेणी का दर्जा मिल सकता है।

विशेष राज्य का दर्जा कब से
वर्ष 1969 में पांचवे वित्त आयोग (अध्यक्ष महावीर त्यागी) ने गाडगिल फोर्मुले (Gadgil Formula) के आधार पर 3 राज्यों (जम्मू & कश्मीर, असम और नागालैंड) को विशेष राज्य का दर्जा दिया था। इन तीनों ही राज्यों को विशेष दर्जा देने का कारण इन राज्यों का सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक पिछड़ापन था। इसके बाद कुछ और राज्य इस सूची में शामिल हुए।

 

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