High Court: पति को छोड़ लिव-इन में रहने वाली महिला पर आया बड़ा फैसला!

High Court: शादी के बाद पति को छोड़कर लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला। कोर्ट ने कहा कि विवाह के रहते हुए इस तरह के संबंधों को कानूनी सुरक्षा नहीं दी जा सकती। पति की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला विवाह संबंधों के उल्लंघन का है। जानें पूरी जानकारी नीचे।
 
Haryana update, High Court:  हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम मामले में फैसला सुनाया है, जिसमें एक शादीशुदा महिला ने अपने और अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए याचिका दायर की थी। महिला ने दावा किया कि वह पति को छोड़कर लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही है और उसे अपने परिवार से खतरा है। लेकिन कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर देते हुए स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर किसी को स्वतंत्रता का अधिकार जरूर है, परंतु यह अधिकार कानूनी सीमा में ही माना जाएगा।

फैसले की मुख्य बातें:  High Court

  • शादीशुदा महिला की स्थिति:
    कोर्ट ने बताया कि महिला पहले से ही कानूनी रूप से शादीशुदा है और उसकी पत्नी के रूप में उसकी जिम्मेदारियाँ बनी हुई हैं। इसलिए, अगर वह अपने पति को छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहती है, तो उसे सुरक्षा की मांग करने का कोई वैध आधार नहीं मिल सकता।

  • स्वतंत्रता का अधिकार और कानूनी सीमा:
    भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता का अधिकार देता है, लेकिन इस स्वतंत्रता का प्रयोग कानूनी दायरे में होना चाहिए। कोर्ट ने यह रुख अपनाते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को अवैध या अनैतिक रिश्तों को बढ़ावा देने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

  • सुरक्षा याचिका का खारिज होना:
    महिला और उसके साथी ने अपनी सुरक्षा के लिए याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके परिवार से उन्हें खतरा है। कोर्ट ने यह तय किया कि सुरक्षा प्रदान करना उचित नहीं है, और इस मामले में याचिका खारिज कर दी गई।

  • जुर्माना और सामाजिक नैतिकता:
    कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया और यह निर्देश दिया कि यह जुर्माना उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा किया जाएगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समाज में गलत और अवैध रिश्तों को बढ़ावा देने वाली याचिकाओं को स्वीकार नहीं किया जाएगा।

समाजिक और कानूनी प्रभाव: High Court

यह फैसला सामाजिक नैतिकता और कानूनी व्यवस्था के बीच संतुलन बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि विवाह के बंधन में बंधे हुए व्यक्ति अपने पति-पत्नी के रूप में निर्धारित जिम्मेदारियाँ निभाने के बाद ही स्वतंत्रता का दावा कर सकते हैं। यदि कोई महिला शादीशुदा होते हुए भी अपने पति को छोड़कर किसी अन्य के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहती है, तो उसे अपने पुराने कानूनी बंधन और सामाजिक नैतिकताओं का पालन करना होगा।

इस फैसले से यह संदेश भी जाता है कि अदालतें ऐसे मामलों में सामाजिक और नैतिक मूल्यों को भी ध्यान में रखती हैं, ताकि परिवारिक संरचना और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ बनी रहें। कोर्ट ने कहा कि यदि महिला ने अपने पति के साथ की गई शादी को तोड़ने का कोई वैध कारण प्रस्तुत नहीं किया, तो वह सुरक्षा के नाम पर अवैध संबंधों को बढ़ावा नहीं दे सकती।