India's First IAS Officer: ऐसे तोड़ा था अंग्रेजों का गुरूर, मिलिए भारत के पहले IAS ऑफिसर से
 

Haryana Update: ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम करने वाले सिविल सर्वेंट को पहले कंपनी के डायरेक्टर्स द्वारा नामित किया जाता था, बाद में इस प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे, ब्रिटिश संसद की सेलेक्ट कमेटी की लॉर्ड मैकाउले रिपोर्ट में एक प्रस्ताव पेश किया गया
 

Civil Service Exam Satyendranath Tagore: आपको बता दें किदेश में जब आईएएस अफसरों की बात आती है तो लोगों को उनका रुतबा तो दिखाई देता है लेकिन उस रुतबे के पहले की जो मेहनत होती है उसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है.

जब बात देश के पहले आईएएस अफसर की बात आती है तो फिर बात ही अलग है. आज हम आपको बता रहे हैं कि देश के पहले आईएएस अफसर कौन थे? हम बात कर रहे हैं सत्येंद्रनाथ टैगोर की.

उनका जन्म 1 जून 1842 को कोलकाता में जोरासांको के टैगोर परिवार में महर्षि देबेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के यहाँ हुआ था. उनकी पत्नी ज्ञानदानंदिनी देवी थीं. उनके एक बेटा और एक बेटी सुरेंद्रनाथ टैगोर और इंदिरा देवी चौधुरानी थीं. वह प्रेसीडेंसी कॉलेज के स्टूडेंट रहे थे. वह भारतीय सिविल सेवा (ICS) के पहले भारतीय अधिकारी थे. वह 1864 में सेवा में शामिल हुए.

सत्येंद्रनाथ टैगोर कोलकाता, पश्चिम बंगाल के एक भारतीय बंगाली सिविल सेवक, कवि, संगीतकार, लेखक, समाज सुधारक और भाषाविद थे. वह पहले भारतीय थे जो 1863 में एक भारतीय सिविल सेवा अधिकारी बने, वह ब्रह्मो समाज के सदस्य थे.

इस उद्देश्य के लिए 1854 में लंदन में सिविल सर्विस कमीशन का गठन किया गया. इसके अगले साल परीक्षा की शुरुआत हो गई. जब यह एग्जाम शुरू किया गया.  इसके लिए न्यूनतम आयु 18 साल और अधिकतम आयु महज 23 साल ही थी. 

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खासतौर से भारतीयों को फेल करने के लिए एक अलग सिलेबस तैयार किया गया. उसमें यूरोपीय क्लासिक के लिए ज्यादा नंबर रखे गए. अंग्रेज नहीं चाहते थे कि इंडियन इस एग्जाम को पास करें. शुरुआत में अंग्रेज इस चाल में कामयाब रहे लेकिन ज्यादा लंबे समय तक नहीं.

साल 1864 में पहली बार किसी भारतीय ने पहली बार यह एग्जाम क्लियर किया. एग्जाम सत्येंद्रनाथ टैगोर (Satyendranath Tagore) इस परीक्षा को पास किया था. वह महान रबिंद्रनाथ टैगोर (Rabindaranath Tagore) के भाई थे.

भारत में जब सिविल सर्विसेज एग्जाम की शुरुआत हुई उस वक्त ईस्ट इंडिया कंपनी का राज चलता था. साल था 1854. पहले जिन कैंडिडेट्स को सिविल सर्विसेज के लिए सेलेक्ट किया जाता था उन्हें ट्रेनिंग के लिए लंदन के हेलीबरी कॉलेज में भेजा जाता था. 
ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम करने वाले सिविल सर्वेंट को पहले कंपनी के डायरेक्टर्स द्वारा नामित किया जाता था. बाद में इस प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे. ब्रिटिश संसद की सेलेक्ट कमेटी की लॉर्ड मैकाउले रिपोर्ट में एक प्रस्ताव पेश किया गया. इसमें भारत में सिविल सर्विस में सेलेक्शन के लिए मेरिट बेस एग्जाम कराने की सिफारिश की गई. 
 अब यह सिलसिला शुरू हो गया था.  3 साल के बाद 4 भारतीयों ने एक साथ फिर सिविल सर्विस एग्जाम पास किया. यह एग्जाम पहले भारत में नहीं होता था.

मगर भारतीयों के लगातार प्रयास और याचिकाओं के बाद आखिरकार उन्हें झुकना पड़ा. प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1922 से यह परीक्षा भारत में होनी शुरू हुई.

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