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नीति शास्त्र में प्यार की व्याख्या आचार्य चाणक्य से मिलती है। चाणक्य ने कहा कि प्यार बुरा नहीं है; प्यार करने वाले बुरे होते हैं, लेकिन प्यार ऐसा नहीं है जो आपको सपने से दूर कर दे। जैसा कि आचार्य चाणक्य ने कहा, मूर्ख लोग सोचते हैं कि वे सच्चा प्यार पा चुके हैं, लेकिन ऐसा नहीं होता।
 

नीति शास्त्र में, आचार्य चाणक्य ने प्यार पर भी टिप्पणी की है। 

यस्य भयं तस्य दुःखस्य भाजनम्।
स्नेहमूलानि दुःखानि वसेत्सुखम्॥

श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि प्रेम से डर पैदा होता है, इसलिए प्रेम ही सभी दुखों का मूल है। प्यार करने वाले भी डरते हैं, उन्हें खोने का डर सताता है, इसलिए लोगों को प्रेम के बंधन को तोड़कर खुशहाल जीवन जीना चाहिए।

चाणक्य ने कहा कि प्यार बुरा नहीं है, लेकिन अंधा प्यार करना बेवकूफी है। किसी भी चीज को बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। यही कारण है कि किसी से बहुत प्यार भी गलत है। प्रेमी या प्रेमिका को हद से गुजरकर प्यार करना सिर्फ दुःख देता है। जब अंधे प्यार में कोई कमी नहीं दिखाई देती, तो आपको माफी मांगनी पड़ती है।

आचार्य चाणक्य ने कहा कि पहली नजर में प्यार नहीं होता; शारीरिक सुंदरता से आकर्षण है। प्यार करने से पहले आप एक दूसरे को जानना चाहिए। जिस व्यक्ति के साथ जीवन बिताना है, उसे समय देकर सिर्फ उसके बारे में जानने से प्यार करना बुद्धिमानी होगी। अगर नहीं, तो जीवन दर्द से भरा होगा।

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चाणक्य ने कहा कि प्रेमी का जीवन स्वर्ग बन सकता है अगर वह सुंदर, संस्कारी और विवेकशील है, लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो जीवन भर नर्क का अनुभव होता है। यहां सुंदरता का मतलब सिर्फ बाहरी सुंदरता नहीं है, बल्कि आत्मिक सुंदरता भी है।

चाणक्य कहते हैं कि एक से बात करने वाली स्त्री दूसरे से प्यार करती है और तीसरे को भूल जाती है। ऐसा कहने का उद्देश्य है कि ऐसे गुण वाले लोगों से दूर रहें। इसलिए एक दूसरे को जानना और प्यार करना महत्वपूर्ण है।


प्यार बुरा नहीं है, कहते हैं आचार्य चाणक्य; प्यार अच्छा है लेकिन प्यार करने वाला गलत होता है। प्रेम आपके सालों पुराने सपनों को तोड़ देता है, तो वह प्यार नहीं हो सकता; ऐसे रिश्ते को तुरंत समाप्त करना चाहिए।