Gram Cultivation: कब औऱ कैसे करें चने की खेती, क्या रहेगा सही तापमान

Gram Cultivation: चना भारत की दालो वाली सबसे बड़ी फसल है। मनुष्य चने को दाल के रूप में प्रयोग करते हैं और पौधे का बाकी हिस्सा पशुओं के लिए चारे के रूप में प्रयोग करते हैं। चना का उत्पादन मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान, बर्मा, टर्की में किया जाता है। 
 

Gram Cultivation: चना भारत की दालो वाली सबसे बड़ी फसल है। मनुष्य चने को दाल के रूप में प्रयोग करते हैं और पौधे का बाकी हिस्सा पशुओं के लिए चारे के रूप में प्रयोग करते हैं। चना का उत्पादन मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान, बर्मा, टर्की में किया जाता है। भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र राज्यों में सबसे अधिक उत्पादन होता है। चना उत्पादन में प्रथम स्थान की बात करे तो विश्व मे भारत एवं राज्य में मध्यप्रदेश आता है।

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चना की खेती के लिए आवश्यक समय:
चना की खेती अक्टूबर से 15 नवंबर तक होती है। इस समय चने का अंकुरण अच्छा होता है, इसलिए दिसंबर तक बुवाई कर सकते हैं, लेकिन उत्पादन पर असर पड़ता है।

चना की खेती करने से पहले:
खेत को चने की खेती के लिए तैयार करने के लिए दो से तीन गहरी जुताई करके रोटावेटर से मिटटी को समतल करना चाहिए. ध्यान दें कि जुताई से पहले गोबर की खाद डाल देना चाहिए ताकि अधिक उत्पादन मिल सके।

बिज़ उपचार:
चने में प्राय:उकठा रोग देखने को मिलता है जिसमे पौधा सूखने लगता है इस लिए हमें चने के बीज को थायरम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बिज की दर से या ट्रायकोदर्मा से भी बिज उपचार कर सकते है

चने के लिए सही मिटटी और तापमान:
चने की फसल को किसी भी प्रकार की मिटटी में उगाया जा सकता है, लेकिन रेतीली और चिकनी मिटटी सबसे अच्छी होती है. इसमें pH 6 से 7.5 होता है और तापमान 24 से 30 डिग्री सेल्सियस होता है।

बिज़ की मात्रा :
देशी बीज 30 से 35 किलोग्राम प्रति एकड़ और काबुली बीज 35 से 40 किलोग्राम प्रति एकड़ पर्याप्त माना जाता है।

बुवाई की प्रक्रिया:
सानदार बुवाई करके चने की खेती भी कर सकते हैं, लेकिन सिड्रिल से बुवाई करने से बिज का जमाव अच्छा होता है, खरपतवारों को नियंत्रित करना आसान होता है और अधिक उत्पादन मिलता है। इस विधि से बुवाई करने से उत्पादन अधिक होगा. बिज की गहराई 7 से 8 सेंटीमीटर, पौधे से पौधे की दूरी 12 से 15 सेंटीमीटर और कतार से कतार की दूरी 30 से 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए. खेत में अधिक समय तक पानी नहीं जमा रहना चाहिए, इसलिए पानी को निकालना चाहिए।

सिचाई करने का समय:
वैसे तो चने को बहुत पानी नहीं चाहिए, लेकिन फूल आने और फल्ली बनने पर सिंचाई करना चाहिए. ध्यान रहे कि खेत में पानी ज्यादा समय तक नहीं रहना चाहिए।

चने की बीमारी एवं रोकथाम:
100-120 ग्राम एमामेक्टिन बेन्जोट (5% SG), 350 ग्राम साफ़ फंगीसाइड (NP 19:19:19) और 150 लीटर पानी में घोलकर चने में उकठा रोग (पत्ती छेदक, फल्ली छेदक) को स्प्रे करें. दूसरा स्प्रे फल प्रति एकड़ 200 मिलीलीटर क्विनालफास और फंगीसाइड स्प्रे करें।

निष्कर्ष
इस लेख में हमने आपको बताया कि चना देश में और विदेश में बनाया जाता है और इससे कई व्यंजन बनाए जाते हैं। चना अक्सर दलहनी फसलों में महत्वपूर्ण है इसकी खेती करने से किसानों की आय बढ़ेगी, और व्यापारियों को इसे खरीदने का मौका मिलेगा।

यह कम लागत के बावजूद अच्छा उत्पादन देता है, जिससे किसानों को अच्छी आय मिलेगी और चना प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है। चने की खेती से भूमि में नाइट्रोजन मिल सकता है इसकी जड़ों में नाइट्रोजन भारी गाठ होती है