Gyanvapi Case पर फैसले के बाद अब क्या होगा अगला कदम,जानिए
Haryana update: याचिका स्वीकार कर ली गई है, अब आगे क्या होगा?(The petition has been accepted, what will happen next?)
अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की आपत्ति थी कि केस सुनवाई के योग्य नहीं है, क्योंकि ज्ञानवापी क्षेत्र पूजा स्थल एक्ट, वक्फ एक्ट और काशी विश्वनाथ एक्ट के प्रावधानों के तहत आता है। उनकी आपत्ति को कोर्ट ने खारिज कर दिया है। अब 22 सितंबर को सुनवाई होगी। अब आगे लिखित बयान दाखिल किए जाएंगे और मुद्दे तय किए जाएंगे। मां श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी प्रकरण में जिन अन्य लोगों ने पार्टी बनने के लिए आवेदन दी हैं, उनका निपटारा कोर्ट करेगा।

जिला न्यायालय में आगे किन चीजों पर सुनवाई होगी?(What things will be heard next in the District Court?)
कोर्ट में मां श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन और ज्ञानवापी परिसर स्थित अन्य देव विग्रहों की सुरक्षा के संबंध में दाखिल सिविल मुकदमे की नियमित सुनवाई शुरू होगी। शिवलिंग मिलने का जो स्थान बताकर मस्जिद के वजूखाने को सीज किया गया था, सुनवाई में वह मसला भी शामिल होगा। हिंदू पक्ष एडवोकेट कमिश्नर की ज्ञानवापी कमीशन की रिपोर्ट को सुनवाई का एक अहम बिंदु बनाने की मांग कर सकता है। हिंदू पक्ष ज्ञानवापी के धार्मिक स्वरूप के निर्धारण के लिए ASI से रडार तकनीक से पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग भी कोर्ट से कर सकता है।

कोर्ट के फैसले से ज्ञानवापी मस्जिद पर क्या असर पड़ेगा?(How will the decision of the court affect the Gyanvapi mosque?)
फिलहाल ऐसा तो कहीं से नहीं है। इस मुकदमे में ज्ञानवापी की जमीन पर कब्जे के लिए दावे से संबंधित यानी स्वामित्व का निर्धारण नहीं होना है। 5 महिलाओं ने जो याचिकाएं दायर की हैं, वो मां श्रृंगार गौरी समेत अन्य मंदिरों में पूजा की अनुमति से संबंधित हैं। वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर के कैंपस में ही है, मस्जिद की एक दीवार किसी मंदिर के अवशेष की तरह नजर आती है।
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कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम पक्ष के पास अब क्या विकल्प हैं?(What are the options for the Muslim side after the court's decision?)
मुस्लिम पक्ष पास जिला कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट जाने का रास्ता खुला हुआ है। कोर्ट के ऑर्डर की कॉपी मिलने के बाद अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी उसके खिलाफ हाईकोर्ट में रिवीजन याचिका दाखिल कर सकती है।
हिंदुओं को पूजा का अधिकार मिल जाएगा, तो क्या असर पड़ेगा?(If Hindus get the right to worship, what will be the effect?)
1993 के पहले भी मां श्रृंगार गौरी का नियमित दर्शन-पूजन होता था। फिलहाल साल में एक दिन ही होता है। उनके नियमित दर्शन-पूजन का अधिकार मिल जाने से ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज पढ़ने पर कोई असर नहीं होगा।
काशी विश्वनाथ एक्ट-1983 से आगे की सुनवाई पर क्या असर होगा?(What will be the effect on further hearing from Kashi Vishwanath Act-1983?)
श्रीकाशी विश्वनाथ एक्ट एक तरह से मंदिर के प्रबंधन से संबंधित है। उसमें न्यास परिषद, मुख्य कार्यपालक अधिकारी, अर्चक आदि के बारे में बताया गया है। बाबा विश्वनाथ के मंदिर का प्रबंधन सुचारु रूप से चलता रहे, एक्ट उसी के लिए बनाया गया है। इस एक्ट के अनुसार ही मंदिर के न्यास की बैठकें होती हैं। इस एक्ट के अनुसार ही मंदिर को मिलने वाले चढ़ावे के खर्च के संबंध में निर्णय लिया जाता है। मंदिर की संपत्तियों की देख-रेख भी एक्ट के तहत ही की जाती है। उससे मां श्रृंगार गौरी के प्रकरण की सुनवाई पर कोई असर नहीं होगा।

विशेष पूजा स्थल एक्ट-1991 से इस मामले पर क्या असर होगा?(How will the Special Places of Worship Act-1991 affect the matter?)
विशेष पूजा स्थल एक्ट को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अक्टूबर में उस पर सुनवाई होनी है और सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को हलफनामा भी दाखिल करने को कहा है। बाकी एक्ट तो यह कहता ही है कि देश की आजादी के दिन जिस धार्मिक स्थल की जो स्थिति थी वही आगे भी रहेगी, मगर अहम बात यह भी है कि पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विशेष पूजा स्थल एक्ट की सुनवाई जारी रहने के बीच काशी और मथुरा के केस की सुनवाई रोकी नहीं जाएगी।
क्या ज्ञानवापी मामला भी अयोध्या जैसा होता जा रहा है?(Is the Gyanvapi case also becoming like Ayodhya?)
अयोध्या में अच्छे तथ्य के साथ मजबूत साक्ष्य भी थे। यहां भी बहुत सारे ठोस साक्ष्य हैं। हिंदू पक्ष का मानना है कि काशी में भी यदि रडार तकनीक से पुरातात्विक सर्वेक्षण हो जाए तो साक्ष्य वैज्ञानिक तरीके से प्रमाणित हो जाएंगे। अदालत का निर्णय ठोस साक्ष्य पर ही आधारित होता है।

किसका पक्ष कितना मजबूत है?(Whose side is stronger?)
ज्ञानवापी का मसला हिंदू पक्ष के लिहाज से ज्यादा मजबूत दिखाई देता है। यह बात एडवोकेट कमिश्नर के कमीशन की कार्रवाई में भी सामने आ चुकी है। पुरातात्विक सर्वेक्षण हो जाए, तो बहुत कुछ पारदर्शी तरीके से स्पष्ट हो जाएगा।
ज्ञानवापी से जुड़ी कितनी याचिकाएं कोर्ट में लंबित हैं?(How many petitions related to Gyanvapi are pending in the court?)
जिला अदालत में एक दर्जन से ज्यादा याचिकाएं लंबित हैं। कुछ मामले हाईकोर्ट में भी लंबित है। सुप्रीम कोर्ट भी मां श्रृंगार गौरी प्रकरण की मॉनिटरिंग कर रहा है।
फैसले की महत्वपूर्ण बातें(important points of the decision)
पांचों वादी महिलाओं ने प्रार्थना पत्र में विवादित स्थल के मालिकाना हक की मांग नहीं की है, सिर्फ मां श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा करने व अन्य देवी-देवताओं के विग्रह के संरक्षण की मांग की है। 1993 तक उनकी नियमित पूजा होती भी थी। 1993 के बाद से हर वर्ष सिर्फ एक बार नवरात्र चतुर्थी के दिन पूजा की जा रही है।
यह मुकदमा नागरिक अधिकार, मौलिक अधिकार के साथ-साथ रीति-रिवाजों व धार्मिक अधिकार के रूप में पूजा के अधिकार तक सीमित है। वह विवादित स्थल को मंदिर घोषित करने की मांग नहीं कर रहीं।
इस मुकदमे की सुनवाई करने के अदालत के अधिकार क्षेत्र को बाधित नहीं किया जा सकता। वादी गैर-मुस्लिम हैं, इसलिए वक्फ एक्ट की धारा 85 के तहत मुकदमे की सुनवाई पर प्रतिबंध इस मामले में लागू नहीं होता।
वादी की दलीलों के मुताबिक वे लंबे समय से 1993 तक ज्ञानवापी परिसर स्थित मां श्रृंगार गौरी, भगवान हनुमान और भगवान गणेश की पूजा कर रही थीं।
प्रतिवादी पक्ष के वकील ने तर्क दिया कि यह मुकदमा उप्र श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम, 1983 से बाधित है। मगर मेरे विचार में प्रतिवादी यह साबित नहीं कर सके कि मुकदमा इस अधिनियम से बाधित कैसे है।
किसी विग्रह के खंडित हो जाने से धर्मस्थल की धार्मिक निष्ठा-पवित्रता कम या खत्म नहीं हो जाती।
विग्रह की अनुपस्थिति में भी कानूनी रूप से भी उस धार्मिक स्थल की मान्यता अक्षय रहती है
मंदिर पक्ष के प्रमुख तर्क
भूखंड के आराजी संख्या 9130 (विवादित परिसर) में लगातार दर्शन-पूजन होता रहा है। 1993 में बैरिकेडिंग होने तक हिंदू देवी-देवताओं की पूजा होती थी।
काशी विश्वनाथ एक्ट 1993 में पूरे परिसर को बाबा विश्वनाथ के स्वामित्व का हिस्सा माना गया। एक्ट के खिलाफ जो फैसले हुए, वे शून्य हैं।
ज्ञानवापी वक्फ संपत्ति नहीं है, क्योंकि वक्फ संपत्ति का कोई मालिक होना चाहिए। इस मामले में संपत्ति हस्तांतरण का कोई आधार नहीं है।
प्रदेश शासन की ओर से जारी गजट में ज्ञानवापी की वक्फ संख्या 100 बताई गई है। मगर कोई आराजी संख्या दर्ज नहीं है।
1937 के दीन मोहम्मद केस में 15 गवाहों ने स्पष्ट किया था कि यहां पूजा अर्चना होती थी। ऐसे में मंदिर की मान्यता नई बात नहीं है।
मस्जिद पक्ष की प्रमुख दलीलें
प्रार्थना पत्र में दर्शन-पूजन के अधिकार की मांग पूरे हिंदू समाज के लिए की गई है। इसलिए सुनवाई स्थानीय अदालत में नहीं हो सकती।
ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। वक्फ एक्ट के तहत मुकदमे की सुनवाई सिविल अदालत में नहीं हो सकती है।
दीन मोहम्मद बनाम सरकार 1936 के मुकदमे में अदालत ने ज्ञानवापी को मस्जिद माना है और नमाज का अधिकार दिया है।
वर्षों से ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज हो रही है, इसलिए पूजा अधिनियम (विशेष प्रविधान) 1991 लागू होता है।
औरंगजेब की दी जमीन पर मस्जिद बनी थी। उस वक्त औरंगजेब का शासन था, इसलिए संपत्ति भी उसकी थी।
वाराणसी कोर्ट में मंदिर पक्ष से हरिशंकर जैन, विष्णु जैन, सुधीर त्रिपाठी, मान बहादुर सिंह, शिवम गौड़, अनुपम द्विवेदी ने मुकदमा लड़ रहे हैं तो मस्जिद पक्ष के वकील मेराजुद्दीन सिद्दीकी, रईस अहमद, शमीम अहमद हैं। कोर्ट के निर्णय के बाद प्रकरण में अब पांच वादी महिलाओं की ओर से दाखिल प्रार्थना पत्र में उनकी मांगों पर सुनवाई होगी। मस्जिद पक्ष अदालत में अपना जवाब दाखिल करेगा। मंदिर पक्ष को भी अपनी मांगों के समर्थन में दलील रखने का मौका मिलेगा। इस दौरान मुकदमे में पक्षकार बनने के लिए दिए गए आवेदन पर भी सुनवाई होगी।