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Judge Breaking nib: सजा देने के बाद जज अपनी पेन की निब क्यों तोड़ देते हैं?

Latest News: देश में रेयर ऑफ रेयरेस्ट केस, यानी  जघन्यतम अपराध करने वाले मुजरिम को फांसी की सजा सुनाई जाती है. वहीं जब कोर्ट में जज किसी मुजिरम को ये सजा सुनाते हैं तो ये फैसला लिखने के बाद अपने पेन की निब तोड़ देते हैं. अगर आपने ये सुना नहीं होगा तो कभी-कभी न किसी फिल्‍म में देखा जरूर होगा लेकिन क्‍या आपने कभी ये सोचा है कि आखिर जज ऐसा क्‍यों करते हैं? क्‍यों न्‍यायधीश फांसी की सजा सुनाने के बाद अपने पेन की निब तोड़ देते हैं.
 
​​Judge Breaking nib: सजा देने के बाद जज अपनी पेन की निब क्यों तोड़ देते हैं? 

Haryana Update: अक्सर आप लोगों ने कई फिल्मों में जज को किसी दोषी को मौत की सजा का फैसला देते हुए देखा होगा. अगर आपको ऐसी कोई फिल्म का दृश्य याद है, तो आपको ये पता ही होगा की अक्सर जब भी कोई अपराधी दोषी साबित हो जाता है, तो जज द्वारा उसको फांसी का दंड सुनाते ही पेन की निब को तोड़ दिया जाता है. वहीं कई बार आपके मन में ये सवाल भी आया होगा कि ऐसा क्यों किया जाता है.

 

 

 

 

प्रथा ब्रिटिश शासन के काल से शुरू हुई

भारत में पेन की निब तोड़ने की प्रथा ब्रिटिश शासन के काल के समय शुरू हुई थी. जिसको आज भी फांसी का फैसला सुनाने के बाद निभाया जाता है. ब्रिटिश शासन के दौरान तो कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी की सजा दी गई है. मगर आजाद भारत में किसी जज के द्वारा पहली बार पेन की निब 1949 में तोड़ी गई थी. भारत में सन् 1949  को महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे फांसी की सुनाई गई थी. गोडसे को पंजाब उच्च न्यायालय द्वारा ये सजा सुनाई थी. इस सजा के अनुसार उनको 15 नवंबर 1949  में अंबाला की जेल में फांसी दे दी गई थी.

देश में सबसे बड़ी सजा

फांसी की सजा देश में सबसे बड़ी होती है. ऐसे में जिस व्यक्ति का अपराध जघन्यतम अपराध की श्रेणी में आता हो, उसे ही ये सजा सुनाई जाती है. इसलिए ऐसे किसी भी मामले में सजा सुनाने के बाद जज अपने पेन की निब को तोड़ देते हैं. इस उम्‍मीद में की दोबारा ऐसा अपराध न हो. वहीं इसके पीछे का तर्क ये भी है कि फांसी की सजा सुनाने के बाद पेन की निब इसलिए भी तोड़ी जाती है, क्योंकि जिस पेन ने अपराधी की मौत लिखी है वह किसी और काम के लिए इस्तेमाल नहीं की जा सके.

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ये चीज असर जिंदगी से ली गई

फिल्मों में पेन की निब केवल फिल्म के सीन को अच्छा बनाने या दिखाने के लिए ही नहीं तोड़ी जाती है. बल्कि ये चीज असर जिंदगी से ली गई है. जी हां, असर जिंदगी में जब भी कोई जज किसी अपराधी को दोषी मानकर उसके अपराध के लिए उसे मौत की सजा देता है तो अपने पेन की निब तोड़ देता है. क्यों जज द्वारा पेन की निब अपना फैसला सुनाने के बाद तोड़ी जाती है? आज हम इसके पीछे छुपे कुछ कारणों के बारे में आपको बताने वाले हैं.  


 

सजा सुनाने के बाद पेन की निब तोड़ देते हैं जज!
फांसी की सजा देश में सबसे बड़ी होती है. ऐसे में जिस व्यक्ति का अपराध जघन्यतम अपराध की श्रेणी में आता हो, उसे ही ये सजा सुनाई जाती है. ये फैसला लिखने के बाद पेन की निब तोड़ दी जाती है. फांसी की सजा देश में सबसे बड़ी होती है. ऐसे में जिस व्यक्ति का अपराध जघन्यतम अपराध की श्रेणी में आता हो, उसे ही ये सजा सुनाई जाती है. ये फैसला लिखने के बाद पेन की निब तोड़ दी जाती है.


 

किसी का जीवन खत्म होना

ऐसा माना जाता है कि जज अपने सुनाए गए फैसले पर दस्तखत करने के बाद अपने पेन की निब इसलिए तोड़ देते हैं क्योंकि फांसी की सजा देने से दोषी का जीवन खत्म हो जाता है. इसलिए मौत जैसी दर्दनाक सजा फैसला लिखते ही इस मनहूस पेन के निब की भी कुर्बानी दे दी जाती है.

फिर ना हो ऐसा अपराध

दूसरा कारण जो निब के तोड़ने के पीछे है, वो ये है कि इसके बाद किसी भी इंसान के द्वारा वो अपराध ना किया जाए. जज उस उम्मीद में पेन की निब को तोड़ देतें हैं कि लोगों इस अपराध को करने से बचें

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फैसला बदला ना जा सके

जब जज एक बार अपना फैसला सुना देते हैं तो उनके पास भी अपने फैसले को बदलने की ताकत नहीं होती है. इसलिए जज अपने फैसले को बदल ना सकें या उस पर पुनर्विचार ना करें इसलिए वो पेन की निब तोड़ देते हैं. और निब तोड़ने से ये साफ हो जाता है कि फांसी का फैसला एक बार सुनाने के बाद बदला नहीं जा सकता. इस फैसले को बदलने की ताकत सिर्फ उच्च न्यायालय के पास ही होती है. 

दुख के कारण

जब भी किसी दोषी को जज के द्वारा मौत की सजा मिलती है, तो जज अपना दुख प्रकट करते हुए भी अपने पेन की निब तोड़ देते हैं.  इसके अलावा ये भी माना जाता है कि उस पेन का दोबारा इस्तेमाल ना किया जाए. क्योंकि उस पेन से किसी व्यक्ति की मौत की सजा पर दस्तखत किए गए हैं.
भारत में पहली निब कब तोड़ी  गई थी 

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कलम से लिखी हुई बात को कोई मिटा नहीं सकता

इसके अलावा ये भी माना जाता है कि जिस तरह कलम से लिखी हुई बात को कोई मिटा नहीं सकता उसी तरह कोर्ट के द्वारा दी हुई सजा को कोई भी ताकत नहीं रोक सकता है. हालांकि एक गुंजाइश यहां भी बाकी रह जाती है. मौत की सजा के मामले में आखिर में सजा माफी की याचिका पर विचार करना केवल देश के राष्ट्रपति के हाथ में होता है. वह अपने विवेक के आधार पर अपराधी को माफ भी कर सकते हैं.

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